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________________ १२४ जीवाजीवाभिगम सूत्र HHHHHI . टीका में भी ५०-५५ पल्योपम के पाठ के लिए लिखा है - "एतच्च सूत्रं समस्तमपि कापि साक्षाद् दृश्यते क्वचिच्चैवमतिदेश:- "एवं देवीणं ठिई भाणियव्या जहा पंण्णवणाए जाव ईसाण देवीण" मित्ति॥ ___ धारणा से ऐसा समझा जाता है कि सौधर्म ईशान देवलोक में क्रमशः सात व नौ पल्योपम की . स्थिति वाली देवियां ही बताई है इसका कारण यह है कि इतनी स्थिति वाली देवियां वहां पर देवों के काम में आने वाली परिगृहीता देवियों की अपेक्षा समझना चाहिये। इससे ज्यादा स्थिति वाली देवियां आगे के देवलोकों में काम आती है, अत: यहां पर इतनी ही स्थिति की देवियां बताई गई है। ऐसी सम्भावना है। स्त्री वेद की कायस्थिति इत्थी णं भंते! इस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! एक्केणाएसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहिया एक्केणाएसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिओवमाइं पुव्वकोडी पुहुत्तमब्भहियाई। . - एक्केणाएसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं चउहस पलिओवमाइं पुव्वकोडी पुहुत्तमब्भहियाई। ... एक्के णाएसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडीपुहुत्तमब्भहियं। एक्केणाएसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं पलिओवमपुहुत्तं पुव्वकोडीपुहुत्तमब्भहियं। कठिन शब्दार्थ - पुवकोडीपुहुत्तमब्भहियं - पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! स्त्री, स्त्री रूप में लगातार कितने काल तक रह सकती है? उत्तर - १. हे गौतम! एक आदेश-अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक स्त्री, स्त्री रूप में रह सकती है। २. एक आदेश से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक स्त्री, स्त्री रूप में रह सकती है। . ३. एक आदेश (अपेक्षा) से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक स्त्री, स्त्री रूप में रह सकती है। . . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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