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प्रथम प्रतिपत्ति - देवों का वर्णन
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२. अनुत्तरौपपातिक। ग्रैवेयक देव नौ प्रकार के कहे गये हैं - १. अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक २. अधस्तन मध्यम ग्रैवेयक ३. अधस्तन उपरिम ग्रैवेयक ४. मध्यम अधस्तन ग्रैवेयक ५. मध्यम मध्यम ग्रैवेयक ६. मध्यम उपरिम ग्रैवेयक ७. उपरिम अधस्तन ग्रैवेयक ८. उपरिम मध्यम ग्रैवेयक और ९. उपरिम उपरिम ग्रैवेयक। अनुत्तरौपपातिक देव पांच प्रकार के कहे गये हैं - १. विजय २. वैजयंत ३. जयंत ४. अपराजित और ५. सर्वार्थसिद्ध।
__ ये देव संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - १. पर्याप्त और २. अपर्याप्त - तेसि णं तओ सरीरगा - वेउव्विए तेयए कम्मए। ओगाहणा दुविहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य, तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं सत्त रयणीओ, उत्तरवेउव्विया जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, सरीरगा छण्हं संघयणाणं असंघयणी णेवट्ठी णेव छिरा णेव बहारू णेव संघयणमत्थि, जे पोग्गला इट्ठा कंता जाव ते तेसिं संघायत्ताए परिणमंति।
किं संठिया! गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य, तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया ते णं णाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णा छ लेस्साओ पंच इंदिया पंच समुग्घाया सण्णी वि असण्णी वि इत्थी वेयावि पुरिसवेयावि णो णपुंसगवेया, पज्जत्ती अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठी तिण्णि, तिण्णि दसणा, णाणी वि अण्णाणी वि, जेणाणी ते णियमा तिण्णाणी अण्णाणी भयणाए, 'तिविहे. जोगे, दुविहे उवओगे, आहारो णियमा छद्दिसिं ओसण्णकारणं पडुच्च वण्णओ हालिह सुक्किलाइं जाव आहारमाहारेंति, उववाओ तिरियमणुस्सेसु, ठिई जहण्णेणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं, दुविहा वि मरंति, उव्वट्टित्ता णो णेरइएसु गच्छंति तिरियमणुस्सेसु जहा संभवं, णो देवेसु गच्छंति, दुगइया दुआगइया परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता, से तं देवा, से तं पंचेंदिया, से तं ओराला तसा पाणा॥४२॥ - भावार्थ - देवों में तीन शरीर होते हैं - वैक्रिय, तैजस और कार्मण। उनके शरीर की अवगाहना दो प्रकार की होती है - भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। इनमें जो भवधारणीय है वह जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट सात हाथ की है। उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग उत्कृष्ट एक लाख योजन की है। देवों के शरीर में संहनन नहीं होते हैं क्योंकि उनमें न
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