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________________ ९० जीवाजीवाभिगम सूत्र २. स्थिति द्वार - इनकी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पूर्व कोटि की होती है । ३. उद्वर्त्तना द्वार - भुजपरिसर्प दूसरी नरक तक जाते हैं। शेष वर्णन उरपरिसर्पों के समान है। खेचर जीवों का वर्णन से किं तं खहयरा ? खहयरा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा चम्पक्खी तहेव भेदो, ओगाहणा जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं, ठिई जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो, सेसं जहा जलयराणं णवरं जाव तच्चं पुढविं गच्छंति जाव से तं खहयर गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया, से तं. तिरिक्खजोणिया ॥ ४० ॥ भावार्थ - खेचर कितने प्रकार के कहे गये हैं ? खेचर चार प्रकार के कहे गये हैं । वे इस प्रकार हैं - चर्मपक्षी आदि भेद पूर्वक्त् समझने चाहिये । अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुष पृथक्त्व । स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग, शेष सारा वर्णन जलचरों के समान समझना चाहिये । विशेषता यह है कि ये तीसरी नरक तक जाते हैं। यह खेचर गर्भव्युत्क्रांतिक पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का वर्णन हुआ। इस प्रकार तिर्यंचयोनिकों का निरूपण पूर्ण हुआ । विवेचन - गर्भज खेचर जीव भी सम्मूर्च्छिम खेचर जीवों की तरह चार प्रकार के कहे गये हैं । यथा - १. चर्मपक्षी २. रोमपक्षी ३. समुद्ग़क पक्षी और ४. वितत पक्षी । गर्भज खेचर जीवों के २३ द्वारों का कथन जलचरों के समान ही है। जिन द्वारों में विशेषता है वे इस प्रकार हैं - १. अवगाहना द्वार - गर्भज खेचर जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग उत्कृष्ट धनुष पृथक्त्व (दो धनुष से नौ धनुष तक) की होती है । २. स्थिति द्वार - जघन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग की स्थिति होती हैं। ३. उद्वर्त्तना द्वार - खेचर जीव मर कर तीसरी नरक तक जाते हैं। देवों में उत्पन्न हो तो आठवें सहस्रार देवलोक तक तथा सभी मनुष्यों और तिर्यंचों में उत्पन्न हो सकते हैं। तिर्यंच जीवों की अवगाहना और स्थिति बताने वाली निम्न दो गाथाएं भी किन्हीं प्रतियों में मिलती है - - जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्रसं । गाउयपुहुत्तं भुयगे, धणुयपुहुत्तं च पक्खीसु ॥ १ ॥ Jain Education International *************************** For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004194
Book TitleJivajivabhigama Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages370
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size8 MB
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