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________________ ३४ अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र ************** ************************* * विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में धन्यकुमार की धर्म-रुचि विषयक वर्णन किया गया है। धन्य अनगार ने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की उसी दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके इस प्रकार बोले - 'हे भगवन्! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं जीवनपर्यंत निरन्तर बेले बेले के पारणे में आयम्बिल करता हुआ अपनी आत्मा को विशुद्ध करता हुआ विचरूं।' आयम्बिल की विधि बताते हुए टीकाकार ने कहा है - विगइरहियस्स ओयण भजिय चणगाइलुक्ख अन्नस्स। खित्ता जले अचित्ते खाणं आयंबिलं जाण॥ - विगय रहित (घी, दूध, दही, तेल, गुड़, शक्कर आदि सरस पदार्थ रहित) चावल, सेके हुए चने आदि लूखा अन्न अचित्त जल में डाल कर एक बार खाना ही 'आयम्बिल' है। __ ऐसा रूक्ष नीरस आहार भी संसृष्ट - खरडे हाथों से दिया हुआ हो तो ही लेना, असंसृष्ट हाथों से नहीं अर्थात् उसी से लेना जिसके हाथ उस भोजनादि से लिप्त हो तथा वह आहार उज्झित धर्म वाला हो जिसे दूसरे श्रमण-शाक्यादि ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र, भिखारी (करुणा भरी आवाज से भोजन मांगने वाले) आदि भी लेने की अभिलाषा न करे, ऐसा आहार ही मुझे आयम्बिल में ग्रहण करना कल्पता है। जो 'उज्झिय धम्मियं' की टीका करते हुए टीकाकार लिखते हैं - "उज्झिय-धम्मियं ति उज्झितं-परित्यागः से एव धर्मः-पर्यायोयस्यास्तीति उज्झित धर्मः, अर्थात् - जिस अन्न का सर्वथा परित्याग कर दिया गया हो वह 'उज्झित धर्म' होता है। धन्य अनगार के इस प्रकार निवेदन करने पर भगवान् ने फरमाया - 'जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो, शुभ कार्य में विलंब न करो।' तए णं से धण्णे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्टतुट्ठ जावजीवाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से इस प्रकार तप करने की आज्ञा प्राप्त होने से धन्य अनगार हृष्ट तुष्ट हुए यावत् जीवन पर्यंत बेले-बेले के तप कर्म के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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