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________________ *********** [4] २५. सुकालकुमार २६. महाकालकुमार २७. कण्हकुमार २८. सुकण्हकुमार २६. महाकण्हकुमार ३०. वीरकण्हकुमार ३१. रामकण्हकुमार ३२. सेणकण्हकुमार ३३. महासेणकण्हकुमार ३४. मेघकुमार ३५. दीनकुमार ३६. कूणिक । इन राजकुमारों में से २३ राजकुमारों ने दीक्षा धारण कर उत्कृष्ट तप संयम की आराधना की। परिणामस्वरूप अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। जिनका वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। मेघकुमार जिनका वर्णन ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र में है, उन्होंने श्रमण धर्म को स्वीकार किया और अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए। नंदीसेनकुमार भी दीक्षा स्वीकार कर साधना पथ पर आगे बढ़े। इस प्रकार पच्चीस राजकुमारों के दीक्षा लेने का वर्णन मिलता है। शेष ग्यारह राजकुमारों ने साधना पथ स्वीकार नहीं किया वे मर कर नरक में गये । निरयावलिया सूत्र के प्रथम वर्ग में श्रेणिक महाराजा कालकुमार आदि दस पुत्रों के नरक गमन का वर्णन है। इसके अलावा ग्यारहवां पुत्र कूणिक भी नरक में गया । प्रस्तुत सूत्र में सम्राट श्रेणिक के जिन तेवीस पुत्रों का वर्णन है वह अति संक्षिप्त है । थोड़ा-सा उनके जीवन का परिचय देकर बाकी के लिए मेघकुमार तथा गुणरत्न संवत्सर आदि तप के लिए स्कन्धकमुनि की भलावण दी गई। हाँ गृहस्थ अवस्था के समय का तो अभयकुमार का तो बहुत विस्तृत वर्णन मिलता है। दण्ड, अभयकुमार अत्यन्त रूपवान एवं तीक्ष्ण चारों बुद्धियों का धनी था। वह साम, दाम, भेद आदि नीतिओं में निष्णातं था। वह सम्राट श्रेणिक के प्रत्येक कार्य के लिए सच्चा सलाहकार एवं राजा श्रेणिक का मनोनीत मंत्री था । श्रेणिक राजा की जटिल से जटिल समस्याओं को वह अपनी कुशाग्र बुद्धि से क्षण मात्र में सुलझा देता था । उन्होंने मेघकुमार की माता धारिणी और कूणिक की माता चेलना के दोहद को अपनी कुशाग्र बुद्धि से पूर्ण किये। अपनी लघुमाता चेलना और श्रेणिक का विवाह सम्बन्ध भी सआनंद सम्पन्न कराने में इनकी मुख्य भूमिका रही। इसी प्रकार जैन आगम साहित्य में उनकी कुशाग्र बुद्धि से अनेक समस्याएं चाहे राज्य कार्य से सम्बन्धित थी अथवा परिवार आदि से सम्बंधित उनके निराकरण के उदाहरण मिलते हैं। • अभयकुमार द्वारा अनेक लोगों में धार्मिक भावना जागृत करने के उदाहरण भी जैन साहित्य में मिलते हैं । सूत्रकृतांग सूत्र में आर्द्रकुमार को धर्मोपकरण उपहार रूप में प्रेषित करने वाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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