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तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन - धन्यकुमार की दीक्षा
'इन्भ' शब्द का अर्थ होता है 'हाथी'। जिसके पास हस्ति परिमित द्रव्य होता है उसे 'इभ्य' सेठ कहते हैं। ये इभ्य सेठ जघन्य, मध्यम तथा उत्कृष्ट भेद से तीन प्रकार के होते हैं। एक हाथी के परिमाण में जिसके पास सोना, चांदी हो उसे 'जघन्य इभ्य' कहते हैं। एक हाथी के परिमाण में जिसके पास माणिक, मोती आदि धनराशि हो उसे 'मध्यम इभ्य' कहते हैं। एक हाथी के परिमाण में जिसके पास मात्र वज्र-हीरे ही हों उसे 'उत्कृष्ट इभ्य' कहते हैं। इभ्य श्रेष्ठियों में श्रेष्ठ अर्थात् उत्कृष्ट इभ्य श्रेष्ठियों के यहां धन्यकुमार का विवाह हुआ। प्रत्येक कन्या के माता-पिता द्वारा धन्यकुमार को रत्नआभरण, वस्त्र, यान-रथ, घोड़ा, गाड़ी आदि, आसन-पलंग, बिछौने आदि, दास-दासी आदि बत्तीस-बत्तीस दहेज में मिले।
तदनन्तर वे धन्यकुमार अपने महल में अनेक प्रकार के मृदंग आदि वाद्यों एवं गीत नृत्यों के साथ मनुष्य संबंधी पांचों प्रकार के विषय सुखों का उपभोग करते हुए विचरने लगे। . भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसा णिग्गया, राया जहा कोणिओ तहा जियसत्तू णिग्गओ। ___ भावार्थ - उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का सहस्राम्रवन उद्यान में पदार्पण हुआ। परिषद् भगवान् को वंदन करने के लिए निकली। कोणिक राजा के समान जितशत्रु राजा भी वन्दन करने के लिए निकला।
धन्यकुमार की दीक्षा तए णं तस्स धण्णस्स तं महया जणसदं जहा जमाली तहा णिग्गओ णवरं पायचारेणं जाव जं णवरं अम्मयं भई सत्थवाहिं आपुच्छामि। तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ, मुच्छिया वुत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे णो संचाएइ जहा थावच्चापुत्तो जियसत्तुं आपुच्छइ छत्तचामराओ सयमेव जियसत्तू णिक्खमणं करेइ जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पव्वइए अणगारे जाए ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी।
कठिन शब्दार्थ - पायचारेणं - पैदल गया, महया - बड़े भारी ऐश्वर्य से, अम्मयं -
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