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द्वितीय वर्ग - शेष अध्ययनों का वर्णन
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एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते, मासियाए संलेहणाए दोसु वि वग्गेसु।
॥ बीओ वग्गो समत्तो॥ भावार्थ - हे जम्बू! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के द्वितीय वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है।
इन दोनों वर्गों में एक-एक मास की संलेखना जाननी चाहिये अर्थात् दोनों वर्गों के तेईस अनगारों ने एक एक मास का पादपोपगमन अनशन (संथारा) किया था।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्रों में द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययनों का वर्णन किया गया है। तेरह ही राजकुमार श्रेणिक राजा और धारिणी देवी के पुत्र थे। जालिकुमार के समान ही इनका जन्म महोत्सव, बालक्रीड़ा, शिक्षा आदि कार्य संपन्न हुए। आठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ। अनुपम सांसारिक सुखों का त्याग कर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप दीक्षा अंगीकार की। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। गुणरत्न संवत्सर तप का आराधन किया। सोलह वर्ष पर्यंत संयम का पालन किया और अंत में एक मास की संलेखना करके साठ भक्तों को
छेदन कर अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। इनमें अनुक्रम से दीर्घसेन और महासेन विजय विमान .. में, लष्टदंत और गूढदंत वैजयंत में, शुद्धदंत और हल्ल जयंत विमान में, द्रुम और द्रुमसेन
अपराजित विमान में और शेष महाद्रुम सेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन और पुण्यसेन ये पांचों ही सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुए।
ये सभी अनुत्तर विमानों से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और सभी कर्मों का क्षय · कर परम पद मोक्ष को प्राप्त करेंगे।
॥ इति द्वितीय वर्ग समाप्त॥
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