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द्वितीय वर्ग - सुधर्मा स्वामी का समाधान
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भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी को उत्तर दिया - हे जंबू! मोक्ष को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन कहे हैं। वे इस प्रकार हैं - १. दीर्घसेन २. महासेन ३. लष्टदंत ४. गूढदंत ५. शुद्ध दंत ६. हल्ल ७. द्रुम ८. द्रुमसेन ६. महाद्रुमसेन १०. सिंह ११. सिंहसेन १२. महासिंहसेन और १३. पुण्यसेनः। इस प्रकार द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन जानना चाहिये।
विवेचन - प्रथम वर्ग की समाप्ति पर श्री जम्बूस्वामी ने श्री सुधर्मास्वामी से सविनय निवेदन किया कि - हे भगवन्! अनुत्तरोपपातिक सूत्र के प्रथम वर्ग का अर्थ जिस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया था वह मैंने आपके मुखारविंद से उपयोगपूर्वक श्रवण कर लिया है। अब हे भगवन्! आप कृपा कर फरमाइये कि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिकदशा के द्वितीय वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है।
'जम्बूस्वामी की इस जिज्ञासा को सुन कर सुधर्मास्वामी ने कहा - हे जम्बू! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादित किये हैं। जिनके नाम भावार्थ से स्पष्ट है।
उक्त कथन से यह भलीभांति सिद्ध होता है कि अपने से बड़ों को जो कुछ भी पूछना हो, विनयसहित ही पूछना चाहिये। विनयपूर्वक प्राप्त किया हुआ - सीखा हुआ ज्ञान ही सफल होता है और विकास को प्राप्त होता है। अतः प्रत्येक मोक्षाभिलाषी को विनयपूर्वक गुरु के सान्निध्य में श्रुताभ्यास करना चाहिये। - सामान्य रूप से द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययनों का नाम सुन कर श्री जम्बू स्वामी विशेष रूप से प्रत्येक अध्ययन के अर्थ जानने की जिज्ञासा से पुनः सुधर्मास्वामी से विनयपूर्वक निवेदन करते हैं -
जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स पढमज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? - भावार्थ - हे भगवन्! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के द्वितीय वर्ग के तेरह अध्ययन प्रतिपादित किये हैं तो हे भगवन्! द्वितीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का मोक्ष को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ फरमाया है?
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