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अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र
श्री सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू! मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है।
. ॥ प्रथम वर्ग समाप्त॥ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रथम वर्ग के शेष नौ अध्ययनों का वर्णन किया गया है। इनका सारा वर्णन जालिकुमार के प्रथम अध्ययन के समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें से सात तो धारिणी देवी के पुत्र थे और वेहल्ल वेहायस चेलना के एवं अभयकुमार नन्दा देवी के पुत्र थे। प्रथम के पांचों कुमारों ने सोलह वर्षों तक संयम पर्याय का पालन किया, तीन कुमारों ने बारह. वर्षों तक और शेष दो कुमारों ने पांच वर्ष तक संयम पर्याय का पालन किया था। पहले पांच अनुक्रम से पांच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए और पिछले उत्क्रम से पांच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। यह इन दश अनगारों के उत्कट संयम पालन का फल है कि वे एक-भवावतारी हुए और भविष्य में मोक्ष के अव्याबाध सुखों को प्राप्त करेंगे। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि संयम का पारंपरिक फल मोक्ष है और यह सभी सुखाभिलाषियों के लिये उपादेय है।
इन नौ अध्ययनों के विषय में हस्तलिखित प्रतियों में निम्न पाठ भेद मिलता है -
"एवं सेसाण वि नवण्हं भाणियव्वं नवरं सत्तण्हं धारिणसुया, विहल्ले विहायसै चेल्लणा अत्तए, अभय नंदा अत्तइ। आइल्लाणं पंचण्हं सोलसवासाइं सामण्णं परियाओ पाउणित्ता, तिण्हं बारस वासाइं दोण्हें पंच वासाइं। आइल्लाणं पंचण्हं आणुपुव्वीए उववाओ विजए, विजयंते, जयंते, अपराजिए, सव्वसिद्धे दीहदंते सव्वसिद्धे लहदंते अपराजिए विहल्ले जयंते, विहायसे विजयंते, अभय विजए। सेसं जहा पढमे तहेवा एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गरस अयमहे पण्णते।"
उपरोक्त मूल पाठ को देखने से ज्ञात होता है कि हस्तलिखित प्रतियों में पूरे नौ अध्ययनों के विषय में कहा गया है जबकि मुद्रित पुस्तक में पहले आठ अध्ययनों का वर्णन देकर अंत में अभयकुमार का पृथक् वर्णन दे दिया गया है। अतः कोई भेद नहीं है।
प्रथम वर्ग का सार-संक्षेप जानकारी के लिए तालिका रूप इस प्रकार है -
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