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अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र ****** ************* **********************************
हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है। ___ विवेचन - इस प्रकार अनुत्तरोपपातिकदशा सूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में जालिकुमार का वर्णन किया गया है। ___ किसी भी त्यागी पुरुष के जीवन का संबंध उनके आद्य जीवन से जुड़ा हुआ रहता है। सुनने वाला जब तक पूर्व दशा को नहीं जान ले तब तक जीवन की उत्तर दशा को भलीभांति समझ नहीं . सकता इसी कारण सुधर्मा स्वामी-'उस काल' 'उस समय', 'राजगृह नगर', 'गुणशील उद्यान', 'श्रेणिक राजा' 'धारिणी देवी' आदि नाम दे दे कर उस समय की स्थिति का दिग्दर्शन कराते हैं।
___जालिकुमार कोई साधारण व्यक्ति नहीं था परंतु वह मगधाधिपति राजा श्रेणिक का स्वरूपवान् पुत्र था। लालन पालन तथा बहत्तर कला का अध्ययन ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में वर्णित मेघकुमार के समान बता कर "उनके जीवन की तुलना हर एक व्यक्ति कर सके” ऐसा स्पष्ट अभिप्राय व्यक्त किया है। इतना ही नहीं परंतु उस राजकुमार का रूप लावण्यवती आठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ और युवावस्था को प्राप्त वह जालिकुमार उत्तम महल में पूर्व पुण्योपार्जित शब्दादि विषयों का अनुभव करता हुआ आनन्द में निमग्न था, ऐसे समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का आगमन सुनकर दर्शन तथा उपदेश सुनने के लिये उत्साहित होकर जाना, वह प्रसंग आज के धनवानों के लिये महान् आदर्श और उपदेश का काम करता है। धनीपन की सार्थकता धर्मी होने में है न कि पथभ्रष्ट होकर व्यसन सेवन और विषयसुख के मार्ग की प्रवृत्ति में। ____ आज के अधिकांश मानव त्याग की अपेक्षा भोगों में रत रह कर ही मनुष्य जन्म की सार्थकता समझते हैं तब वे महापुरुष जीवन के पहले प्रसंग में प्रथम बार ही जिनवाणी-संसार त्याग का उपदेश सुन कर उसी समय संसार बंधन को शीघ्र तोड़ कर विरक्त बन जाते और भवोभव संचित कर्मों का नाश करने के लिये प्रधान तप को अंगीकार कर लेते थे। वह तप भी कोई साधारण नहीं परन्तु गुणरत्न संवत्सर आदि कठिन तप को अंगीकार करने में ही वे अपने जीवन की महत्ता समझते थे। जालिकुमार ने उक्त तप को धारण किया। वे ऐसे महातप के द्वारा शरीर का ही नहीं परंतु कर्मों का शोषण करके विजय विमान में उत्पन्न हुए और भविष्य में महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेंगे, शाश्वत सुखों के स्वामी बनेंगे।
॥ इति जालिकुमार नामक प्रथम अध्ययन समाप्त॥
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