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**************####################### महान् तपोधनी महात्माओं की पवित्र आत्मा का दर्शन तो कर सकते हैं और उनके गुणों के प्रति प्रणिपात की भावना-गुणानुरागिता से हमारी आत्मा भी प्रभावित होती है और कभी हम भी वैसी साधना करने के योग्य बन सकते हैं - भले ही परभव में हो।
वर्तमान समय में शास्त्र-स्वाध्याय और ऐसे उदात्त चरित्र हमें उस भव्य साधना का दर्शन कराते हुए अचक्षुदर्शन से उन महात्माओं के दर्शन करने का सौभाग्य प्रदान करते हैं। ___इस से हमारी मूढ़ता दूर हो कर हमें इस काल में भी निष्ठापूर्वक साधना करने वाले संतसतियों को समझने की विवेक-दृष्टि मिलती है।
___धन्ना अनगार के चरित्र में माता का नाम तो आया, परन्तु पिता के नाम का उल्लेख नहीं हुआ। ऐसा ही वर्णन ज्ञाता सूत्र के थावच्चा पुत्र अनगार का भी है। उनके भी माता का ही उल्लेख है। क्या कारण है - इसका? क्या १. वहाँ महिला-प्रधान परम्परा थी, २. वे विधवा थी या ३. पिता की सम्पत्ति की उत्तराधिकारिणी थी? भद्रा सार्थवाही के गृह-स्वामिनी होने का कारण क्या था? मुझे लगता है कि महिला प्रधान परम्परा तो नहीं थी। क्योंकि अन्य वर्णनों में वहीं पुरुष-प्रधान परम्परा के उल्लेख बहुत मिलते हैं। विधवा हो, या फिर पति व्यापारार्थ विदेश गया हो, जिसके लम्बे काल तक लौटने की संभावना नहीं हो। हो सकता है कि पति घरजामाता रहा हो - इंग्लेण्ड की महारानी के पति के समान, जो पति तो है, परन्तु राजा नहीं है।
धन्यकुमार को व्यापार-व्यवसाय की चिन्ता नहीं थी। वह बत्तीस प्रियतमाओं के साथ रंग-राग और भोग-विलास में मस्त था। घर-बार और व्यवसाय का काम माता ही देखती थी। वह तो रंगरेलियों में ही रचा-पचा रहता था। दीनदुनिया की उसे कोई चिन्ता नहीं थी। परन्तु परिणति एकदम पलटती है। भगवान् महावीर के एक ही उपदेश से वह एकांत भोगी भौंरा महान् त्यागी-तपस्वी बन गया। कैसी उत्कटसाधना की उस महात्मा ने? यह सूत्र ऐसे ही त्यागी तपस्वी महात्माओं की महान् साधनाओं से भरा है। इसका भावपूर्ण स्वाध्याय करके हम उन महात्माओं की चारित्र-सम्पन्नता के दर्शन का लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
सैलाना दिनांक २-५-१९७६
- रतनलाल डोशी
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