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- वर्ग ३ अध्ययन ३ सोमिल द्वारा तापस प्रव्रज्या ग्रहण ............................................................ (पसुबंधा)कया- पशुओं-गाय, भैंसों का पालन किया, जण्णा - यज्ञ, दक्खिणा- दक्षिणा, दिण्णादी, अतिहि - अतिथि, पूइया - पूजा (सत्कार), हूया - हवन, जूवा - यूप, णिक्खित्ता - स्थापित किये, अम्बारामा- आम्र उद्यान, माउलिंगा - मातुलिंग (बिजौरा), बिल्ला - बिल्व-बेल, कविट्ठाकविट्ठ (कैथ), चिंचा - इमली, पुष्फारामा - पुष्प उद्यान (फूलों की वाटिका), सारक्खिज्जमाणासंस्क्षण किये जाने से, संगोविज्जमाणा - संगोपन किये जाने से, संवहिज्जमाणा - संवर्धन किये जाने से, किण्हा - कृष्ण-श्यामल वर्ण, किण्होभासा - श्यामल आभा वाले; महामेह णिकुरम्बभूयामहामेघों के समूह के समान, हरियगरेरिज्जमाणसिरीया - हरी भरी शोभा से। ___ भावार्थ - तदनन्तर किसी समय मध्य रात्रि में कुटुम्ब जागरणा करते हुए उस सोमिल ब्राह्मण को इस प्रकार विचार-मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ-मैं वाराणसी नगरी का रहने वाला उच्च ब्राह्मण कुन (अत्यंत शुद्ध ब्राह्मण कुल) में उत्पन्न हुआ हूँ। मैंने व्रतों को अंगीकार किया, वेदों का अध्ययन किया, विवाह किया, पुत्रादि को जन्म दिया, समृद्धियों को एकत्रित किया, गाय भैंसों का पालन किया, यज्ञं किये, दक्षिणा दी, अतिथि पूजा की, सत्कार किया, अग्नि में हवन किया, यूप-यज्ञीय स्तम्भ रोपा इत्यादि कार्यों को किया। अब मुझे यह उचित है कि मैं कल-रात बीत जाने यावत् प्रातःकाल होने पर वाराणसी नगरी के बाहर बहुत से आम के बगीचे लगवाऊँ, इसी प्रकार मातुलिंग-बिजोरा, बेल, कपित्थ (कविट्ठ), चिंचा-इमली और फूलों के बगीचे लगवाऊँ। इस प्रकार विचार किया और विचार करके रात बीतने पर सूर्योदय होते ही उसने वाराणसी नगरी के बाहर आम के बगीचे यावत् फूलों के बगीचे लगवाएं। तदनन्तर वे बहुत से आम के बगीचे यावत् फूलों के बगीचे अनुक्रम से संरक्षण, संगोपन-लालन पालन और संवर्द्धन किये जाने से दर्शनीय उद्यान बन गये। वे कृष्ण वर्ण-श्यामल, श्यामल आभा वाले यावत् रमणीय महामेघों के समूह समान पत्रित, पुष्पित, फलित होकर अपनी हरी भरी आभा से अत्यंत शोभायमान हो गये।
सोमिल द्वारा तापस प्रवंज्या ग्रहण तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्झित्था-एवं खलु अहं वाणारसीए णयरीए सोमिले णामं माहणे अञ्चंतमाहणकुलप्पसूए, तए णं मए वयाई चिण्णाई जाव जूवा णिक्खित्ता, तए णं मए वाणारसीए णयरीए बहिया बहवे अम्बारामा जाव पुष्फारामा य रोवाविया, तं सेयं खलु ममं इयाणि कल्लं
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