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वर्ग २ अध्ययन २
सुधर्मा स्वामी ने फरमाया - हे जम्बू! उस काल उस समय में चंपा नामक नगरी थी। पूर्णभद्र नामक चैत्य था। कोणिक राजा राज्य करता था। उसके पद्मावती नामक पट्टरानी थी। उस चम्पानगरी के श्रेणिक राजा की पत्नी, कोणिक राजा की छोटी माता सुकाली नाम की रानी थी। उस सुकाली देवी का पुत्र सुकालकुमार था। उस सुकाल कुमार के महापद्मा नामक रानी थी जो सुकुमार यावत् विशिष्ट गुणों से युक्त थी।
तए णं सा महापउमा देवी अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि एवं तहेव महापउमे णामं दारए जाव सिमिहिइ, गवरं ईसाणे कप्पे उववाओ उक्कोसट्ठिइओ।णिक्खेवो॥४॥
॥ बीयं अज्झयणं समत्तं॥ भावार्थ - उस महापद्मा रानी ने किसी समय सुखद शय्या पर सोते हुए सिंह का स्वप्न देखा, इत्यादि सारा वर्णन पूर्वानुसार कह देना चाहिये। बालक का जन्म हुआ जिसका नाम 'महापद्म' रखा गया। यावत् वह दीक्षा अंगीकार करके महाविदेह में उत्पन्न होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा। इतनी विशेषता है कि महापद्म अनगार ईशान देवलोक में उत्कृष्ट स्थिति वाले देव हुए।
निक्षेप - इस प्रकार हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कल्पावतंसिका के द्वितीय अध्ययन का यह भाव फरमाया है। इस प्रकार जैसा मैंने भगवान् से सुना है वैसा ही तुम्हें कहता हूँ।
विवेचन - कल्पावतंसिका के इस दूसरे अध्ययन में महापद्म कुमार का वर्णन है। महापद्म कुमार से जन्म से लेकर सिद्धि गमन तक का सारा वर्णन पद्मकुमार के समान ही समझना चाहिये। किंतु महापद्म देव की ईशान देवलोक में स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम की हुई। महापद्म देवलोक से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र से मोक्ष में जाएंगे।
॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त॥
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