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________________ वर्ग १ अध्ययन १ उपसंहार ........................................................... हे गौतम! कालकुमार चौथी नरक पृथ्वी से निकल कर महाविदेह क्षेत्र में आढ्य कुल में जन्म लेगा और दृढ़प्रतिज्ञ के समान सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा यावत् सभी दुःखों का अंत करेगा। तं एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं णिरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते-त्तिबेमि।।७४॥ पढमं अज्झयणं समत्तं॥१॥१॥ भावार्थ - सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे जम्बू! इस प्रकार सिद्धिगति को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का यह भाव फरमाया है। हे जम्बू! जैसा मैंने भगवान् के मुख से सुना है वैसा ही तुम्हें कहता हूँ। विवेचन - हार हाथी के लिए हुए चेडा-कोणिक के इस घनघोर महायुद्ध में हजारों प्राणियों को काल कवलित होते देख जब काल कुमार गर्जता हुआ आया तो चेडा राजा ने अपनी प्रतिज्ञानुसार अमोघ बाण मार कर कालकुमार को जीवन से रहित कर दिया। अशुभ कर्मोपार्जन के कारण वह मर कर चौथी नरक के हेमाभ नरकावास में चार सागरोपम की स्थिति वाला नैरयिक बना। जहाँ से निकल कर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न हो कर अपने संपूर्ण कर्मों को क्षय करने के बाद सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा। इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने निरयावलिका सूत्र के प्रथम अध्ययन का भाव निरूपित किया। - नोट :- उपर्युक्त अध्ययन में चेटक राजा की पैदल सेना ५७ करोड़ तथा कोणिक राजा एवं दसों भाईयों की सम्मिलित पैदल सेना ३३ करोड़ जितनी बताई गई है। इस सम्बन्ध में पूज्य बहुश्रुत गुरुदेव का ऐसा फरमाना था कि - यहाँ मूल पाठ में लिपि प्रमाद से “कोडि" शब्द हो जाना संभव है जब कि पाठ का वर्णन देखते हुए ५७ लाख एवं ३३ लाख जितनी ही पैदल सेना होनी चाहिए। क्योंकि यहाँ मूल पाठ में हाथी घोड़े आदि की संख्या ५७ हजार, ३३ हजार ही बताई है। यदि सैनिकों की संख्या ५७ करोड़ या ३३ करोड़ होती तो हाथी घोड़ों की संख्या ५७ लाख, ३३ लाख होनी चाहिए, जैसे चक्रवर्ती राजा के होती है। ॥ निरयावलिका सूत्र का प्रथम अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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