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और शरणागत की रक्षा अवश्य होनी चाहिए। दोनों ओर से युद्ध चालू हुआ। राजा चेटक भगवान् महावीर का परम उपासक था, उन्होंने श्रावक के बारहव्रत अंगीकार कर रखे थे। उनके नियम था कि एक दिन में एक ही बाण चलाऊंगा। उनका बाण कभी खाली नहीं जाता था। प्रथम दिन कूणिक की ओर से कालकुमार सेनापति बन कर युद्ध के लिए गया। भयंकर युद्ध हुआ। राजा चेटक ने अमोघ बाण का प्रयोग किया जो कालकुमार को लगा और वह काल धर्म को प्राप्त हुआ। इस तरह एक-एक कर दस भाई सेनापति बनकर गए और सभी राजा चेटक के अचूक बाण से मरकर नरक में गए। ___ उस समय श्रमण भगवान् महावीर प्रभु चम्पानगरी में विराजमान थे। कालकुमार आदि की माताओं ने अपने पुत्रों के बारे में भगवान् से पूछा कि-हमारे पुत्र जो युद्ध में गए हैं वे वापिस जीवित लौटेंगे अथवा काल धर्म को प्राप्त होंगे। भगवान् से उनके काल धर्म की बात सुनी, परिणाम स्वरूप उन दसों की माताओं को संसार से विरक्ति हो गई और उन्होंने भगवान् के पास दीक्षा अंगीकार की। भगवती सूत्र में उसके पश्चात् रथमूसल संग्राम और महाशिलाकंटक संग्राम का विस्तार से उल्लेख है। इन दोनों संग्रामों में एक करोड़ अस्सी लाख मानवों का संहार हुआ। इस प्रकार निरयावलिका सूत्र में : दस राजकुमारों के नरक गमन का वर्णन है।
कप्पवंडसिया - निरयावलिया सूत्र का दूसरा उपांग कप्पवडंसिया है। प्रथम उपांग निरयावलिया में श्रेणिक राजा के कालकुमार आदि दस पुत्रों का युद्ध में कषाय की उग्रता के कारण नरक में जाने का वर्णन, वहीं इस कप्पवंडसिया उपांग में उन्हीं के दस पुत्रों - १. पद्म २. महापद्म ३. भद्र ४. सुभद्र ५. पद्मभद्र ६. पद्मसेन ७. पद्मगुल्म ८. नलिनगुल्म ६. आनंद और १०. नंदन का स्वर्ग गमन का वर्णन है। कालकुमार, सुकालकुमार आदि दस पुत्रों ने भगवान् महावीर के उपदेश को सुनकर दीक्षा अंगीकार की और ग्यारह अंगों का अध्ययन कर अन्तिम समय संलेखना संथारा करके स्वर्ग में पधारें। पहले देवलोक से बारहवें देवलोक तक के देव इन्द्रों के आधीन कल्पयुक्त होते हैं और चूंकि दसों राजकुमार इन देवलोक में पधारे इसलिए इस सूत्र का नाम कप्पवंडसिया प्रयुक्त हुआ है।
पुफिया (पुष्फिका) - तीसरा उपांग पुप्फिया है। इसके भी दस अध्ययन हैं। चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिक, पूर्णभद्र, मणिभद्र, दत्त, शिव, बल और अन्तवृत। इन दस अध्ययनों में प्रथम के चार अध्ययन में चन्द्र, सूर्य, शुक्र और बहुपुत्रिक देव भगवान् के दर्शनार्थ आए और विविध प्रकार के 'नाटक दिखा कर पुनः अपने-अपने स्थान लौट गए। गणधर प्रभु गौतम के द्वारा उन देवों की दिव्य देव
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