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निरयावलिका सूत्र ........................................................... उसका पालन पोषण, उसके द्वारा ७२ कलाओं का सीखना, युवावस्था की प्राप्ति, राजकुमारियों के साथ विवाह, प्रासादों का निर्माण और कामभोगों का उपभोग आदि सारा वर्णन ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के प्रथम मेघकुमार अध्ययन के समान समझ लेना चाहिए।
कोणिक का विचार तए णं तस्स कूणियस्स कुमारस्स अण्णया० पुव्वरत्ता० जाव समुप्पजित्था एवं खलु अहं सेणियस्स रण्णो वाघाएणं णो संचाएमि सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरित्तए, तं सेयं खलु मम सेणियं रायं णियलबंधणं करेत्ता अप्पाणं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तएत्तिकट्ट एवं संपेहेइ संपेहेत्ता सेणियस्स रणो अंतराणि य छिडाणि य विरहाणि य पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहरइ॥३४॥ ___कठिन शब्दार्थ - वाघाएणं - व्याघात से, रज्जसिरिं - राज्यश्री को, णियलबंधणं- बेडी (कैद खाने) में डालना, अंतराणि- अन्तर-अवसर (मौका), छिड्डाणि - छिद्र, विरहाणि - विरह (एकान्त)। ___भावार्थ - तत्पश्चात् उस कोणिक कुमार को किसी समय मध्यरात्रि में यावत् ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि मैं श्रेणिक राजा के व्याघात (विघ्न) के कारण स्वयं राज्यश्री का उपभोग नहीं कर सकता हूँ अतएव श्रेणिक राजा को कैदखाने में डाल कर (बेडी में डालकर) अपना महान् राज्याभिषेक कर लेना ही मेरे लिए श्रेयस्कर होगा। उसने ऐसा संकल्प किया और संकल्प करके श्रेणिक राजा को कैद करने के अन्तर-अवसर, छिद्र (दोष) और विरह (एकान्त) की गवेषणा करता हुआ समययापन करने लगा।
कालादि कुमारों को बुलावा । तए णं से कूणिए कुमारे सेणियस्स रण्णो अंतरं वा जाव मम्मं वा अलभमाणे अण्णया कयाइ कालाईए वस कुमारे णियघरे सद्दावेइ सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे सेणियस्स रण्णो वाघाएणं णो संचाएमो सयमेव रजसिरिं करेमाणा पालेमाणा विहरित्तए, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं सेणियं रायं णियलबंधणं करेत्ता रवं च रटुं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च जणवयं
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