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________________ ३० ... .. . निरयावलिका सूत्र ............................................... निर्भर्त्सना से और उर्द्धषणा से उसका अपमान करके इस प्रकार बोला-'तुमने मेरे इस पुत्र को एकान्त में उकरड़ी-कूडे करकट पर क्यों फिंकवा दिया?' इस प्रकार कह कर उसने ऊँचे-नीचे शब्दों से भला बुरा कहा और शपथ दिलवाते हुए बोला-'हे देवानुप्रिये! तुम इस बालक का अनुक्रम से संरक्षण करते हुए पालन पोषण करो।' तए णं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणी लजिया विलिया, विड्डा करयलपरिग्गहियं० सेणियस्स रण्णो विणएणं एयमढे पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता तं दारगं अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्डे ॥३१॥ भावार्थ - श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने से चेलना देवी ने लज्जित, प्रताड़ित और अपराधिनी-सी होकर दोनों हाथ जोड़ कर विनयपूर्वक श्रेणिक राजा के इस आदेश को स्वीकार किया और अनुक्रम से उस बालक की देखरेख, लालन पालन और संवर्धन करने लगी। पुत्र का रुदन, श्वेणिक का अंगुली चूसना तए णं तस्स दारगस्स एगंते उक्कुरुडियाए उझिजमाणस्स अग्गंगुलिया कुक्कुडपिच्छएणं दूमिया यावि होत्था, अभिक्खणं अभिक्खणं पूयं च सोणियं च अभिणिस्सवइ। तए णं से दारए वेयणाभिभूए समाणे महया महया सद्देणं आरसइ। तए णं सेणिए राया तस्स दारगस्स आरसियसई सोच्चा णिसम्म जेणेव से दारए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ गिण्हित्ता तं अग्गंगुलियं आसयंसि पक्खिवइ पक्खिवित्ता पूयं च सोणियं च आसएणं आमुसइ। तए णं से दारए णिव्वुए णिव्वेयणे तुसिणीए संचिट्ठइ। जाहे वि य णं से दारए वेयणाए अभिभूए समाणे महया महया सद्देणं आरसइ ताहे वि य णं सेणिए राया जेणेव से दारए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तं दारगं करयलपुडेणं गिण्हइ तं चेव जाव णिव्वेयणे तुसिणीए संचिट्ठइ॥ ३२॥ कठिन शब्दार्थ - अग्गंगुलिया - अंगुली का अग्रभाग, कुक्कुडपिच्छएणं - मुर्गे की चोंच से, वेयणाभिभूए - वेदना से अभिभूत, आरसियसदं - रोने के शब्द (आवाज) को, आमूसइ - चूसता है। भावार्थ - तदनन्तर उस बालक को एकान्त उकरडे (कूडे करकट के ढेर) पर फैंकने के कारण उसकी अंगुली का अग्रभाग मुर्गे की चोंच से क्षतिग्रस्त हो गया (छिल गया) जिसके कारण उसकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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