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________________ वर्ग १ अध्ययन १ गौतम स्वामी की जिज्ञासा व प्रभु का समाधान एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे होत्या, रिद्धत्थिमियसमिद्धे० । तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्या, महया० । तस्स णं सेणियस्स रण्णो णंदा देवी होत्या, सोमाल० जाव विहरइ । तस्स णं सेणियस्स रण्णो पुत्ते णंदाए देवीए अत्तए अभए णामं कुमारे होत्या, सोमाल० जाव सुरूवे, सामदाणभेयदण्डकुसले जहा चित्तो जाव रज्जधुराए चिंतए यावि होत्था । तस्स णं सेणियस्स रण्णो चेल्लणा णामं देवी होत्था, सोमाल० जाव विहरइ ॥ १४ ॥ कठिन शब्दार्थ - असुभकङकम्मपब्भारेणं - अशुभकर्म के प्राग्भार से, रज्जधुराए राज्य की धुरा को, सामदाणभेयदण्डकुसले - साम, दाम, भेद, दण्ड की नीति में कुशल C भावार्थ - हे भगवन्! कालकुमार किस आरम्भ से, किस समारंभ से, किस आरम्भ समारम्भ से, किस भोग से, किस संभोग से, किस भोग संभोग से, किस अशुभ कर्म के प्राग्भार से कालमास में काल करके चौथी पंक प्रभा पृथ्वी में यावत् नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ ? इस प्रकार हे गौतम! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था । वह ऋद्धि समृद्धि से सम्पन्न था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। वह महान् था। उस श्रेणिक राजा की नन्दा देवी नामक रानी थी। वह सुकुमार यावत् विचरण करती थी । उस श्रेणिक राजा का पुत्र और नन्दा रानी का आत्मज अभय नामक राजकुमार था। वह सुकुमार यावत् सुरूप था । चित्तराजा की तरह अभयकुमार भी साम, दाम, दण्ड आदि नीतियों में कुशल यावत् राज्य की धुरा को धारण करने ' वाला था ।.. उस श्रेणिक राजा की चेलना नाम की रानी थी जो सुकुमाल यावत् सुख पूर्वक विचरण करती थी। विवचेन - हिंसा, झूठ आदि सावद्य अनुष्ठान को 'आरम्भ' कहा जाता है। तलवार आदि शस्त्रों द्वारा प्राणियों का उपमर्दन करना 'समारम्भ' है। शब्द आदि विषयों को भोगना 'भोग' कहलाता है और इन्हीं को तीव्र अभिलाषा के साथ भोगना 'सम्भोग' है । · Jain Education International १७ 'सामवाणभेयवण्डकुलले जहा चित्तो जाव रखधुराए'. '.....इस वाक्य से सूत्रकार ने अभयकुमार की कार्यकुशलता को चित्त सारथी के समान सूचित किया है । चित्त सारथी का वर्णन राजप्रश्नीय' सूत्र में है। 'जाव' शब्द से निम्न पाठ का ग्रहण हुआ है For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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