SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० निरयावलिका सूत्र के सूचक सामुद्रिक लक्षणों और मस्सा, तिल आदि व्यंजनों और विनय, सुशीलता आदि गुणों से युक्त था तथा मान, उन्मान और प्रमाण से मनोहर और प्रियदर्शन था। कालकुमार और स्थमूसल संग्राम तए णं से काले कुमारे अण्णणा कयाइ तिहिं दंतिसहस्सेहिं तिहिं रहसहस्सेहिं तिहिं आससहस्सेहिं तिहिं मणुयकोडीहिं गरुलवूहे एक्कारसमेणं खण्डेणं कूणिएणं रण्णा सद्धिं रहमुसलं संगामं ओयाए॥६॥ कठिन शब्दार्थ - दंतिसहस्सेहिं - हजार हाथियों, मणुयकोडीहिं - कोटि मनुष्यों, गरुलवूहे - गरुड व्यूह में, रहमूसलं संगामं - रथमूसल संग्राम में, ओयाए - प्रवृत्त हुआ (उतरा)। भावार्थ - तदनन्तर (इसके बाद) किसी समय कालकुमार तीन हजार हाथियों, तीन हजार रथों, तीन हजार घोड़ों और तीन कोटि (तीन करोड़) मनुष्यों को लेकर गरुड व्यूह में ग्यारहवें खण्डअंश के भागीदार कोणिक राजा के साथ रथमूसल संग्राम में प्रवृत्त हुआ। , - विवेचन - हार और हाथी के लिये हुए कोणिक-चेड़ा संग्राम में काल आदि कुमारों का महाराजा चेड़ा के साथ जो युद्ध हुआ उसका वर्णन सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में किया। रथमूसल संग्राम का विस्तृत वर्णन भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक ह में किया गया है जिज्ञासुओं को वहां से देख लेना चाहिये। कालकुमार युद्ध में गरुड़ व्यूह की रचना करता है। - काली देवी की चिन्ता . तए णं तीसे कालीए देवीए अण्णया कयाइ कुडुम्बजागरियं जागरमाणीए अयमेयारवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु ममं पुत्ते कालकुमारे तिहिं दंतिसहस्सेहिं जाव ओयाए, से मण्णे किं जइस्सइ? णो जइस्सइ? जीविस्सइ? णो जीविस्सइ? पराजिणिस्सइ? णो पराजिणिस्सइ? काले णं कुमारे अहं जीवमाणं पासिज्जा? ओहयमण जाव झियाइ॥७॥ कठिन शब्दार्थ - कुडुम्बजागरियं - कुटुम्ब जागरणा, जइस्सइ - जीतेगा-विजय प्राप्त करेगा, जीविस्सइ - जीवित रहेगा, पराजिणिस्सइ - पराजित करेगा। भावार्थ - तब कुटुम्ब जागरणा करते हुए कालीदेवी के मन में इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy