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________________ वर्ग ५ अध्ययन १ भविष्य कथन-उपसंहार . १५५ कठिन शब्दार्थ - विसुद्धपिइवंसे - विशुद्ध पितृवंश वाले, रायकुले - राज कुल में, अव्हाणएअस्नान-स्नान त्याग, अदंतवणए - अदंतधावन-दांत धोने का त्याग, अच्छत्तए - अछत्रक, अणोवाहणए- उपनाह-पगरखी आदि का त्याग, लद्धावलद्धे - लब्धापलब्ध-लाभ और अलाभ, उच्चावया - ऊंचे-नीचे। भावार्थ - तत्पश्चात् वरदत्त अनगार ने पूछा - 'हे भगवन्! वह निषधदेव आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय होने पर वहां से च्यव कर कहां जाएगा? कहां उत्पन्न होगा?' . भगवान् ने फरमाया - 'हे वरदत्त! इसी जंबूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र के उन्नाक नगर में विशुद्ध पितृवंश वाले राजकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। तब वह बाल्यावस्था बीतने पर समझदार होकर युवावस्था को प्राप्त करेगा और तथारूप स्थविरों से केवलबोधि-सम्यक्त्व को प्राप्त कर अगार से अनगार होगा। वह अनगार ईर्या समिति आदि से युक्त यावत् गुप्त ब्रह्मचारी होगा।' ... वह बहुत से चतुर्थ भक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, दशमभक्त, द्वादशमभक्त, मासखमण, अर्द्धमासखमण रूप विचित्र तप कर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों की श्रामण्य पर्याय का पालन करेगा। श्रमण पर्याय का पालन करके मासिक संलेखना से आत्मा को शुद्ध करेगा, साठ भक्तों का अनशन से छेदन करेगा और जिस प्रयोजन के लिये नग्न भाव, मुण्डभाव, स्नान त्याग यावत् अदंत धावन-दांत धोने का त्याग, अछत्रक-छत्र का त्याग, उपानह-पगरखी आदि का त्याग तथा फलक-पाट पर सोना, काठशय्या-काठ पर सोना-बैठना, केशलोच, ब्रह्मचर्य पालन, परघर प्रवेश, पिण्डपात-पर्याप्त भोजनादि का प्राप्त करना, लब्धापलब्ध-लाभ और अलाभ, ऊंचे नीचे-तीव्र और सामान्य ग्रामकंटकों-कष्टों को सहन किया जाता है, उस साध्य-मोक्षरूप अर्थ की आराधना करेगा, आराधना करके चरम श्वासोच्छ्वास में सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् सर्व दुःख का अन्त करेगा। सुधर्मा स्वामी कहते हैं - हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने वृष्णिदशा के प्रथम अध्ययन का यह भाव फरमाया है। ॥ प्रथम अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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