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________________ १५२ वृष्णिदशा सूत्र निषधकुमार द्वारा प्रव्रज्या ग्रहण तए णं अरहा अरिट्ठणेमी णिसढस्स कुमारस्स अयमेयाख्वमज्झत्थियं जाव . वियाणित्ता अट्ठारसहिं समणसहस्सेहिं जाव गंदणवणे उज्जाणे समोसढे। परिसा णिग्गया। तए णं णिसढे कुमारे इसीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्ट० चाउग्घण्टेणं आसरहेणं णिग्गए जहा जमाली जाव अम्मापियरो आपुच्छित्ता पव्वइए अणगारे जाए जाव गुत्तबम्भयारी॥१७७॥ भावार्थ - तत्पश्चात् निषधकुमार के इस प्रकार के मनोगत भावों को जान कर अर्हत् अरिष्टनेमि अठारह हजार साधुओं के साथ विचरते हुए यावत् नंदनवन उद्यान में पधारे (समवसृत हुए)। दर्शनार्थ परिषद् निकली। तब वह निषधकुमार अर्हत् अरिष्टनेमि के पदार्पण के समाचार सुन कर हृष्ट तुष्ट हुआ यावत् चार घंटों वाले अश्व रथ पर आरूढ होकर जमाली के समान दर्शनार्थ निकला यावत् माता पिता से आज्ञा प्राप्त कर दीक्षित हुआ यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हो गया। निषध अनगार की मृत्यु , तए णं से णिसढे अणगारे अरहओ अरिट्ठणेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइसाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थछट्ठ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई णव वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ पाउणित्ता बायालीसं भत्ताई अणसणाए छेएइ, आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते आणुपुव्वीए कालगए।१७८॥ .. भावार्थ - तब उस निषध अनगार ने अर्हत् अरिष्टनेमि के तथारूप के स्थविर भगवंतों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, अध्ययन करके बहुत से चतुर्थ भक्त षष्ठ भक्त यावत् विचित्र तप कर्म से अपनी आत्मा को भावित करते हुए परिपूर्ण नौ वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन किया,पालन करके बयालीस भक्तों का अनशन से छेदन किया,आलोचना प्रतिक्रमण पूर्वक समाधि भावों में कालधर्म को प्राप्त हुआ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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