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________________ ११४ पुष्पिका सूत्र गोयमा! इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले विभेलसंणिवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहि ।।१२६ ।। भावार्थ - गौतम स्वामी ने पुनः भगवान् से पृच्छा की - हे भगवन्! किस कारण से बहुपुत्रिका देवी को बहुपुत्रिका कहा है? हे गौतम! जब जब भी वह बहुपुत्रिका देवी देवेन्द्र देवराज शक्र के पास जाती तब-तब वह बहुत से दारक दारिकाओ, डिम्भक, डिम्भिकाओं की विकुर्वणा करती और विकुर्वणा करके जहाँ देवेन्द्र देवराज शक्र होता वहाँ जाती और वहाँ जाकर देवेन्द्र देवराज शक्र को अपनी दिव्य ऋद्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवानुभाव को प्रदर्शित करती-दिखलाती है इस कारण हे गौतम! वह बहुपुत्रिका देवी बहुपुत्रिका कहलाती है। हे भगवन्! बहुपुत्रिका देवी की स्थिति कितने काल की कही हैं? हे गौतम! बहुपुत्रिका देवी की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है। हे भगवन्! आयु, भव और स्थिति क्षय होने के बाद वह बहुपुत्रिका देवी कहां जाएगी, कहां जाकर उत्पन्न होगी? __हे गौतम! आयु क्षय आदि के बाद वह बहुपुत्रिका देवी इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में विध्यपर्वत की तलहटी में विभेल सन्निवेश में ब्राह्मण कुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगी। , सोमा नामकरण तए णं तीसे दारियाए अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते जाव बारसेहिं दिवसेहिं वीइक्कतेहिं अयमेयारूवं णामधेज्जं करेंति-होउ णं अम्हं इमीसे दारियाए णामधेनं सोमा॥१३०॥ भावार्थ - तत्पश्चात् उस बालिका के माता-पिता ग्यारह दिन बीतने पर यावत् बारहवें दिन इस प्रकार का नामकरण करेंगे-हमारी इस बालिका का नाम 'सोमा' हो। . सोमा का विवाह तए णं सोमा उम्मुक्कबालभावा विग्णयपरिणयमेत्ता जोव्वणगमणुप्पत्ता रूवेण य जोवणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जावं भविस्सइ। तए णं तं सोमं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विण्णयपरिणयमेत्तं जोव्वणगमणुप्पत्तं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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