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________________ ६६ पुष्पिका सूत्र सुधर्मा स्वामी ने जम्बू स्वामी से कहा - हे आयुष्मन् जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन में इस भाव का निरूपण किया है। ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन - सोमिल ब्राह्मण को देव पांच दिन तक पांच स्थानों पर उद्बोधित कर उसे सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है जैसे बारबार प्रयास करने पर सुषुप्त मानव भी जग जाता है उसी प्रकार सोमिल भी प्रबुद्ध हो जाता है। इस प्रकार सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने वाला देव उसे स्वपथ का पथिक बना कर चला जाता है। सोमिल ब्राह्मण द्वारा पूर्व में स्वकृत अन्य मत के नियमों की आलोचना प्रत्यालोचना नहीं करने के कारण वह शुक्रावतंसक विमान में शुक्रदेव के रूप में उत्पन्न हुआ और आगे महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा यावत् सभी दुःखों का अंत करेगा। ॥ तृतीय अध्ययन समाप्त॥ . चउत्थं अज्झयणं चौथा अध्ययन जइ णं भंते! उक्लेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे । परिसा णिग्गया॥११०॥ भावार्थ - जम्बू स्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पूछा-'हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है तो हे भगवन्! पुष्पिका के चतुर्थ अध्ययन में प्रभु ने क्या भाव फरमाया है?' सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं - 'हे जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। गुणशिलक नामक चैत्य था। उस नगर का राजा श्रेणिक था। उस नगर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पर्दापण हुआ। परिषद् उनके दर्शन एवं धर्म श्रवण के लिए निकली। विवेचन - पुष्पिका के तृतीय अध्ययन में शुक्र की पृच्छा के पश्चात् चतुर्थ अध्ययन की पृच्छा का वर्णन है। चतुर्थ अध्ययन में बहुपत्रिका देवी का वर्णन है जो इस प्रकार हैं - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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