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________________ २१० उववाइय सुत्त (२) वर्णन भेद विवाहपण्णत्ती स. १३, उ. ८ में 'पंडियमरण' के भेद बताते हुए, 'आवकहिय' अनशन के . 'पाओवगमण' और 'भत्त-पच्चक्खाण'-इन दो भेदों के 'णीहारिमे य अणीहारिमे य'- ये दो भेद किये गये हैं। उत्तरज्झयण ३० वें अ० में 'सवियार' और 'अवियार' ये दो भेद किये गये हैं और 'नीहारि' और 'अनीहारि'-ये भेद भी गिनाये गये हैं। - गा. १२। १३ 'अवमोदरिया' तप के वर्णन में भी भेद है। - उ. ३० । १४ से २४ गा० 'मणविणय' तप का वर्णन ठाणंगसुत्त ठा. ७ में इस प्रकार हुआ है। पसत्थ मणविणए सत्तविहे. . प० तं.-अपावए, असावज्जे, अकिरिए, निरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूयाभिसंकणे। अपसत्थमणविणए सत्तविहे प० तं-पावए, सावजे, किरिए, उवक्केसे, अण्हयकरे, छविकरे, भूयाभिसंकणे। 'विवाहपण्णत्ती' स. २५ उ. ७ में वर्णन भेद 'मन: योगप्रतिसंलीनता' में इतना विशेष है-'मणस्स एगत्तीभावकरणं'। इसी प्रकार वचन यो० में भी-'वईए वि...... काययोग प्रति० में भी कुछ शाब्दिक अन्तर है। 'मणविणय' से किं तं मणविणए ? - पसत्थमणविणए य अपसत्थ मणविणए य। से किं तं पसत्थमण...? - सत्तविहे. प.तं. अपावए, असावज्जे, अकिरिए, णिरुवक्कमे, अ..... अपसत्थ म० सत्तविहे प० तं.-पावए, सावजे, सकिरिए, सउवक्कोसे, अण्हयकरे, छविकरे, भूताभिसंकणे। से तं अ...। ध्यानवर्णन में 'ठाणंग' गत भेदआर्तध्यान के लक्षण में 'विलवणया' की जगह 'परिदेवणया'। धर्मध्यान के लक्षण में क्रमभेद और 'उवएसरुई' के स्थान पर 'ओगाढरुई'। धर्मध्यान के आलम्बन में 'धम्मकहा' के स्थान पर 'अणुप्पेहा'। धर्मध्यान की अनुप्रेक्षा में क्रमभेद। शुक्लध्यान के भेदों में-'सुहुमकिरिए अप्पडिवाई' के स्थान पर 'सुहुमकिरिए अणियट्टी' और 'सुमुच्छिन्नकिरिए अणियट्टी' के स्थान पर 'समुकिरिय अप्पडिवाती'। शुक्लध्यान की अनुप्रेक्षा में क्रमभेद। - ठाणंग ४१ तिर्यञ्चगति के बन्ध के कारणों में 'उदकंचणयाए वंचणयाए' के स्थान पर 'कूडतोलकूडमाणेणं। - ठाणंग ४।४। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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