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________________ २०० उववाइय सुत्त आत्मा के प्रदेश मनुष्य के शरीर के आकार में खड़े हो जाते हैं। सब सिद्धों के आत्म प्रदेश खड़े मनुष्य के शरीर के आकार के होते हैं। . प्रश्न - सिद्ध भगवन्तों की मध्यम अवगाहना चार हाथ सोलह अंगुल कैसे समझना ? उत्तर - गाथा नं. ६ में सिद्ध भगवन्तों की जो यह मध्यम अवगाहना बताई है वह वास्तव में मध्यम अवगाहना नहीं है किन्तु तीर्थंकर भगवन्तों की अपेक्षा यह जघन्य अवगाहना है यह ऊपर के . गद्य पाठ से स्पष्ट हो जाता है क्योंकि वहाँ सिद्ध होने वाले जीव की जघन्य अवगाहना सात हाथ की बतलाई है। इसकी टीका में स्पष्ट कर दिया है कि यह जघन्य अवगाहना तीर्थंकर भगवन्तों की अपेक्षा समझनी चाहिए। प्रश्न - सिद्ध भगवन्तों की अवगाहना किस प्रकार बोलना चाहिये। उत्तर - सिद्ध भगवन्तों की अवगाहना में जघन्य अवगाहना दो प्रकार से बोलना चाहिये यथासामान्य केवलियों की अपेक्षा जघन्य अवगाहना एक हाथ आठ अंगुल और तीर्थंकर भगवन्तों की अपेक्षा जघन्य अवगाहना चार हाथ सोलह अंगुल तथा उत्कृष्ट अवगाहना ३३३ धनुष और ३२ अंगुल (३३३ धनुष १ हाथ और ८ अंगुल) होती है इस प्रकार सिद्ध भगवन्तों की अवगाहना बोलना चाहिये। प्रश्न - दो हाथ के अवगाहना वाले कौन सिद्ध हुये ? उत्तर - पण्णवणा सूत्रों आदि की टीका तथा प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रन्थों में कूर्मापुत्र का उदाहरण दिया है जिनकी शरीर की अवगाहना दो हाथ थी। सिद्ध अवस्था में उनकी अवगाहना एक हाथ आठ अंगुल है। प्रश्न - तीर्थंकरों में जघन्य अवगाहना का उदाहरण कौनसा है ? उत्तर - अवसर्पिणी काल के अंतिम चौवीसवें तीर्थंकर और उत्सर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर के शरीर की अवगाहना सात हाथ की होती है। सिद्ध अवस्था में उनकी अवगाहना चार हाथ सोलह अंगुल होती है। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सिद्ध अवस्था की अवगाहना चार हाथ सोलह अंगुल है। प्रश्न - उत्कृष्ट अवगाहना का उदाहरण क्या है ? उत्तर - अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर और उत्सर्पिणी काल के चौवीसवें तीर्थंकर के शरीर की अवगाहना तथा पांचों महाविदेह क्षेत्र के सभी तीर्थंकरों के शरीर की अवगाहना ५०० धनुष की होती है तथा सामान्य केवलियों की उत्कृष्ट अवगाहना ५०० धनुष की हो सकती है। जैसे कि-भगवान् ऋषभदेव के पुत्र भरत-बाहुबली आदि सौ पुत्रों की अवगाहना ५०० धनुष की थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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