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________________ बन्दी.....आदि का उपपात १४३ सम-संबाह-सण्णिवेसेसुमणुया भवंति।तंजहा-अंडुबद्धगाणियलबद्धगा हडिबद्धगा चारगबद्धगा हत्थच्छिण्णगा पायच्छिण्णगा कण्णच्छिण्णगा णक्कच्छिण्णगा उट्ठच्छिण्णगा जिब्भच्छिण्णगा सीसच्छिण्णगा मुखच्छिण्णगा मज्झच्छिण्णगा वेकच्छछिण्णगा। भावार्थ - ये जो इन ग्राम, आकर यावत् सन्निवेशों में मनुष्य रहते हैं। यथा-अन्दुक-लोहे या काठ के बन्धन विशेष से जिनके हाथ पैर जकड़े हुए हैं, बेड़ियों से जकड़े हुए. खोड़े में फंसे हुए, अन्धकारमय कारागार में पड़े हुए, सजा आदि के कारण छिदे हुए हाथ, पैर, कान, नाक, होठ, जीभ, शीश, मुख छेदन किये हुए, कमर या उदर और जनेऊ के आकार में छिदे हुए अंग वाले। विवेचन - किसी अपराध के कारण जो काट या लोहे के बन्ध से हाथ पैर आदि अंग बांध दिये जाते हैं अथवा बहुत बड़े अपराध के कारण जिनके नाक, कान आदि अंग काट दिये जाते हैं। ऐसे अपराधियों का यहाँ पर कथन किया गया है। हियउप्पाडियगा णयणुप्पाडियगा दसणुप्पाडियगा वसणुप्पाडियगा गेवच्छिण्णगा तंडुलच्छिण्णगा। - भावार्थ - जिनके हृदय का मांस नोच लिया गया हो, जिनके नेत्र उखाड़ लिये गये हों, जिनके दांत उखड़वा लिये हों, जिनके अण्डकोश उखाड़े गये हों, जिनके गले के अवयव छेद दिये गये हों, जिसके मांस के चावल के दाने के बराबर टुकड़े किये गये हों,-ऐसे व्यक्ति। कागणिमंसक्खाइयया ओलंबिया लंबियया घंसियया घोलियया फाडियया पीलियया सूलाइयया सूलभिण्णगा। - भावार्थ - जिसे उसकी देह से ही कोमल मांस उखाड़-उखाड़ कर खिलाया गया हो, जो रस्सी से बान्ध कर खड्डे में लटकाये गये हों, जो भुजाओं से वृक्ष की शाखा पर बांधे गये हों, जो चंदन के समान घिसे गये हों, जो दही के समान घोलित (मथा गया) हुए हों, जो लकड़ी के समान कुठार से फाड़ दिये गये हों, जो इक्षु के समान यंत्र में पीले गये हों, जो शूली पर चढ़ाये गये हों, जो शूल से भिन्न हो गये हों, ऐसे व्यक्ति। खारवत्तिया वझवत्तिया सीहपुच्छियया। भावार्थ - जिस पर क्षार डाला गया हो या जो क्षार में फेंके गये हो, जो गीले चमड़े से बांधे गये हों, जिनका लिंग काट दिया हो अथवा जिनको सिंह की पूंछ से बांधकर घसीटा गया हो। ऐसे व्यक्ति। दवग्गिदडगा पंकोसण्णगा पंकेखुत्तगा वलय-मयगा वसट्टमयगा णियाणमयगा अंतोसल्लमयगा गिरिपडियगा तरुपडियगा मरुपडियगा गिरिपक्खं-दोलिया तरुपक्खंदोलिया मरुपक्खंदोलिया।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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