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असंयत यावत् एकान्त सुप्त का उपपात
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की बुद्धि मंद होती है उसे 'ग्राम' कहते हैं, नगर - जहाँ अठारह प्रकार के कर नहीं लिये जाते हैं उसे 'नगर' कहा जाता है, खेड - जहाँ मिट्टी का प्राकार हो वह खेड या 'खेडा' कहा जाता है, कर्बट - जहाँ व्यापार धन्धा नहीं चलता हो अथवा जहाँ अनेक प्रकार के कर लिये जाते हैं ऐसा छोटा नगर कर्बट (कस्बा) कहा जाता है, मडम्ब - जिस ग्राम के चारों और अढ़ाई कोस तक अन्य कोई ग्राम न हो उसे मडम्ब कहा जाता है, पट्टण - दो प्रकार का है-जहाँ जल मार्ग पार करके माल आता हो वह 'जलपत्तन' कहा जाता है। जहाँ स्थल मार्ग से माल आता हो उसे 'स्थलपत्तन' कहा जाता है, आकर - लोहा आदि धातुओं की खानों में काम करने वालों के लिए वहीं पर बसा हुआ ग्राम आकर कहा जाता है, द्रोणमुख - जहाँ जल मार्ग और स्थल मार्ग से माल आता हो ऐसा नगर दो मुंह वाला होने से द्रोणमुख कहा जाता है, निगम - जहाँ व्यापारियों का समूह रहता हो वह निगम कहा जाता है, आश्रम - जहाँ संन्यासी तपश्चर्या करते हों वह आश्रम कहा जाता है, एवं उसके आस-पास बसा हुआ ग्राम भी आश्रम कहा जाता है, निवेश - व्यापार हेतु विदेश जाने के लिए यात्रा करता हुआ सार्थवाह (अनेक व्यापारियों का समूह) जहाँ पड़ाव डाले वह स्थान निवेश कहा जाता है। अथवा एक ग्राम के निवासी कुछ समय के लिए दूसरी जगह ग्राम बसावें वह ग्राम भी निवेश कहा जाता है। अथवा सभी प्रकार के यात्री जहाँ-जहाँ विश्राम लें वे सब स्थान निवेश कहे जाते हैं। इसे ही आगम में कहीं जगह 'सन्निवेश' कहा है, सम्बाध - खेती करने वाले कृषक दूसरी जगह खेती करके पर्वत आदि विषम स्थानों पर रहते हों वह ग्राम सम्बाध कहा जाता है। अथवा व्यापारी दूसरी जगह व्यापार करके पर्वत आदि विषम स्थानों पर रहते हों। वह ग्राम सम्बाध कहा जाता है। अथवा जहाँ धान्य आदि के कोठार हों वहाँ बसे हुए ग्राम को भी सम्बाध कहा जाता है, घोष - जहाँ गायों का युथ रहता हो वहाँ बसे हुए ग्राम को घोष (गोकुल) कहा जाता है, अंशिका - ग्राम का आधा भाग, तीसरा भाग या चौथा भाग जहाँ आकर बसे वह वसति 'अंशिका' कही जाती है, पुटभेदन - अनेक दिशाओं से आए हुए माल की पेटियों का जहाँ भेदन (खोलना) होता है वह 'पुटभेदन' कहा जाता है, राजधानी - जहाँ रहकर राजा शासन करता हो वह राजधानी कही जाती है, संकर - जो ग्राम भी हो, खेड भी हो, आश्रम भी हो ऐसा मिश्रित लक्षण वाला स्थान 'संकर' कहा जाता है। यह शब्द मूल में नहीं है भाष्य में है। . भावार्थ - हे भन्ते ! आप किस कारण से इस प्रकार कहते हैं कि - कोई जीव देव होते हैं और कोई जीव देव नहीं होते ?
हे गौतम ! जो ये जीव ग्राम, आकर, नगर, निगम, राजधानी, खेड, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टण, आश्रम, संबाह और सन्निवेशों में, कर्मक्षयादि की इच्छा से रहित भूख-प्यास के सहने से ब्रह्मचर्य के पालन से अस्नान, शीत, आतप, मच्छर, स्वेद-पसीना, 'जल्ल'- रज, 'मल्ल'-सूख कर कठोर बना हुआ मैल और पङ्क-पसीने से गीला बना हुआ मैल के परिताप से थोड़े या बहुत काल तक अपने आपको क्लेश देते हैं। थोड़े-बहुत समय तक अपने को क्लेशित करके, काल के समय में काल करके,
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