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उववाइय सुत्त
समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता वंदइ णमंसइ
भावार्थ - फिर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की तीन बार आदक्षिणा प्रदक्षिणा की, आदक्षिणा प्रदक्षिणा करके वंदना की और उन्हें नमस्कार किया।
वंदित्ता णमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। तं जहा - काइयाए वाइयाए माणसियाए।
भावार्थ - वंदना नमस्कार करके, तीन प्रकार की पर्युपासना से पर्युपासना करने लगा। यथा - कायिकी, वाचिकी और मानसिकी।
काइयाए ताव संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे, अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ।
भावार्थ - कायिकी-हाथ-पैर को संकुचित करके श्रवण करते हुए-नमस्कार करते हुए, भगवान् की ओर मुँह रखकर, विनय से हाथ जोड़े हुए, पर्युपासना करता था।
वाइयाए-जं जं भगवं वागरेइ-एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियंमेयं भंते ! इच्छिय पडिच्छियंमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वयह-अपडिकूलमाणे पज्जुवासइ।
भावार्थ - वाचिकी-जो जो भगवान् कहते, उससे-'यह ऐसा ही है भन्ते !' 'यही तथ्य है भन्ते !' 'यही सत्य है भन्ते !' 'नि:संदेह ऐसा ही है भन्ते !' 'यही इष्ट है भन्ते !' 'यही स्वीकृत है भन्ते !' 'यही वाञ्छित-गृहीत है भन्ते !' - जैसा कि आप यह फरमा रहे हैं।' - यों अप्रतिकूल (अनुकूल) बनकर पर्युपासना करता था।
माणसियाए महया संवेगंजणइत्ता तिव्वधम्माणुरागरत्तो पन्जुवासइ।
भावार्थ - मानसिकी-अति संवेग-उत्साह या मुमुक्षुभाव उत्पन्न करके, धर्म के अनुराग में तीव्रता से आरक्त होकर पर्यपासना करता था।
__सुभद्रा महारानी का प्रस्थान ३३. तएणं ताओ सुभद्दाप्यमुहाओ देवीओ अंतो अंतेउरंसि ण्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ सव्वालंकार-विभूसियाओ;
भावार्थ - तब भगवान् के आगमन की सूचना मिलने पर अन्तःपुर में निवास करनेवाली सुभद्रा प्रमुख देवियों ने स्नान किया यावत् प्रायश्चित्त किया और वे सभी अलंकारों से विभूषित हुई। __ बहूहिं खुजाहिं चिलाईहिं वामणीहिं वडभीहिं बब्बरीहिं पयाउसियाहि जोणियाहिं
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