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________________ उववाइय सुत्त चंपाए णयरीए मज्झंमज्झेणं णिगच्छंति । णिगच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छंति । भावार्थ - चम्पा नगरी के मध्य से होकर निकले। फिर जहां पूर्णभद्र उद्यान था वहां आये । उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताइए तित्थयराइसेसे १०४ पासंति । भावार्थ - कुछ नजदीक आने पर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तीर्थंकर रूप से परिचय देने वाले छत्राति छत्र आदि अतिशय देखें। पासित्ता जाण वाहणारं ठावइंति । ठावइत्ता जाणवाहणेहिंतो पच्चोरुहंति । पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छंति । भावार्थ - अतिशयों को देखकर, यान, गाड़ी, रथ आदि और वाहन बैल, अश्व आदि को ठहराये और उनसे नीचे उतरे। फिर जहां श्रमण भगवान् महावीर स्वामी थे वहां आये । उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति । करिता वंदंति णमंसंति । भावार्थ- वहां आकर, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की तीन बार आदक्षिणा- प्रदक्षिणा की; स्तुति : की और उन्हें नमस्कार किया। वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति । भावार्थ- स्तुति - नमस्कार करके, भगवान् की ओर मुख रखकर, विनय से दोनों हाथ जोड़कर, न अधिक नजदीक और न अधिक दूर ऐसे स्थान पर स्थित होकर, नमस्कार मुद्रा से श्रवण करते हुए, पर्युपासना - सेवा करने लगे। कोणिक को भगवान् की दिन चर्या का निवेदन २८ - तएण से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लद्धट्टे समागे हट्ठतुट्ठे जाव हियए । हाए जाव अप्पमहग्घा -भरणालंकियसरीरे, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ । भावार्थ - तब भगवान् महावीर स्वामी के आगमन की बात विदित होने पर वह प्रवृत्तिव्यापृतभगवान् की विहारचर्या की खबर रखने वाला मुख्य अधिकारी- इस बात को जानकर, बहुत खुश हुआ... यावत् विकसित हृदय हुआ । उसने स्नान किया.... अल्प भारवाले किन्तु मूल्यवान् आभरणों से शरीर को अलंकृत किया, फिर वह अपने घर से बाहर निकला । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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