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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
तज्जणताडणवहबंधणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए । जे यावण्णे तहप्पगारा सावजा अबोहिया कम्मंता पर-पाण-परियावण-करा जे अणारिएहिं कजंति तओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए।
कठिन शब्दार्थ - विगत्तगा - चमडी उधेड़ने वाले, लोहियपाणी - रक्त से सने हाथ वाले, उक्कुंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड कवड साइसपओग बहुला - ठगी वंचना माया, बकवृत्ति (बगुला भक्त) कूट कपट करने वाले साचि प्रयोग-असली दिखा कर नकली देने वाले, दुष्पडियाणंदादुष्प्रत्यानंद - दुःख से प्रसन्न किये जाने वाले, अप्पडिविरया - अविरत, सगड-रह जाण-जुग्गगिल्लि थिल्लि-सियासंदमाणिया-सयणासण-जाण वाहण भोग भोयण पवित्थर विहिओ- गाड़ी, रथ, सवारी डोली. आकाशयान. शिविका, स्यंदमानिया. शय्या. आसन यान वाहन भोग भोजन के विस्तीर्ण विधियों से अविरत कयविक्कय-मासद्धमास रूवगसंववहाराओ - क्रय विक्रय माषक(माषा) अर्द्ध माषक रूप्यक से होने वाले व्यवहारों से, पयणपयावणाओ - पचन-पाचन से, कुट्टण पिट्टण तजण ताडण वह बंध परिकिलेसाओ - कुट्टन, पीडन, तर्जन, ताडन, वध, बंध परिक्लेष से, परपाणपरियावणकरा- दूसरे प्राणियों को परितप्त (क्लेशित) करने वाले, अबोहिया - बोधि बीज से रहित।
भावार्थ- जो पुरुष जीवन भर दूसरे प्राणियों को मारने पीटने वध करने तथा उन्हें नाना प्रकार के . कष्ट देने की आज्ञा देते रहते हैं तथा स्वयं प्राणियों का वध करते रहते हैं, जो हिंसा, झूठ, अदत्तादान,
मैथुन और परिग्रह को जीवन भर नहीं छोड़ते हैं। जो झूठ बोलना और कम मापना कभी नहीं छोड़ते, जो क्रोध मान माया और लोभ को सदा बढ़ाते रहते हैं जो जीवन भर शारीरिक श्रृंगार करने और उत्तमोत्तम वस्त्र आभूषण वाहन तथा उत्तम रूप रस गन्धादि विषयों के सेवन में दत्तचित्त रहते हैं। जो सदा परवञ्चन (ठगना) करने के लिये देश वेष और भाषा को बदल कर विषय के उपार्जन में लगे रहते हैं जो क्रोधादि अठारह पापों से कभी निवृत्त न होकर निरन्तर अनार्य पुरुषों के द्वारा किये जाने वाले सावध कर्मों के अनुष्ठान में तत्पर रहते हैं जो सदा ही क्रय विक्रय के झंझट में पड़ कर माषा आधा माषा और तोला आदि का अभ्यास करते रहते हैं जो जीवन भर अन्न पकाने और पकवाने से सन्तुष्ट नहीं होते, जो सब प्रकार के सावध कर्मों के स्वयं करने और दूसरों से कराने से निवृत्त नहीं होते हैं। वे पुरुष अधर्म स्थान में स्थित हैं यह जानना चाहिये ।
से जहा णामए केइ पुरिसे कलम-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-णिप्फाव-कुलत्थआलिसंदग-पलिमंथग-माइएहि अयंते कूरे मिच्छादंडं पउंजंति; एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाए तित्तिर-वट्टग लावग कवोय-कविंजल-मिय-महिस-वराह-गाह गोह-कुम्मसरिसिव-माइएहिं अयंते कूरे मिच्छादंडं पउंजंति; जा वि य से बाहिरिया परिसा भवइ तं जहा-दासे इवा, पेसे इ वा, भयए इवा, भाइल्ले इवा, कम्मकरए इवा,
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