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अध्ययन २
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३५. सर-चरियं ३६. सक्क-चरियं ३७. बहस्सह-चरियं ३८. उक्का -पायं ३९. दिसादाहं ४०. मिय-चक्कं ४१. वायस-परिमंडलं ४२. पंसु-वुष्टुिं ४३. केस-वुद्धिं ४४. मंस-बुट्टि ४५. रुहिर-वुद्धिं ४६. वेत्तालिं ४७. अद्ध-वेतालिं ४८. ओसोवणिं ४९. तालुग्घाडणिं ५०. सोवागिं ५१. सोवरि ५२. दामिलिं ५३. कालिङ्गिं ५४. गोरि ५५. गंधारिं ५६. ओवतणिं ५७. उप्पयणिं ५८. जंभणिं ५९. थम्भणिं ६०. लेसणिं ६१. आमय-करणिं ३२. विसालकरणिं ६३. पक्कमणिं ६४. अंतद्धाणिं ६५. आयमिणिं, एवमाइयाओ विजाओ अण्णस्स हेउं पउंजंति, पाणस्स हेउं पउंजंति, वत्थस्स हेउं पउंजंति, लेणस्स हेउं पति, सयणस्स हेउं पउंजंति, अण्णेसिं वा विरूव-रूवाणं काम-भोगाणं हेउं पउंजंति, तिरिच्छं ते विजं सेवेंति, ते अणारिया, विप्पडिवण्णा काल-मासे कालं किच्चा अण्णयराइं आसुरियाई किब्बिसियाइं ठाणाइं उववत्तारो भवंति । तओ वि विप्पमुच्चमाणा भुज्जो एलमूयत्ताए तम अंधयाए पच्चायंति॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - णाणाच्छंदाणं - नाना अभिप्राय वाले, णाणाझवसाणसंजुत्ताणं - नाना अध्यवसायं वाले, णाणाविह पावसुयज्झयणं - नाना प्रकार के पाप श्रुत का अध्ययन, भोमं - भूगर्भ शास्त्र, उप्पायं - उत्पात शास्त्र, सुविणं - स्वप्न शास्त्र, अंतलिक्खं - अंतरिक्ष, सरं - स्वर, लक्खणंलक्षण, वंजण- व्यंजन, मिंडलक्खणं - मेष लक्षण, कागिणी लक्खणं - काकिणी लक्षण, सुभगाकरसुभगाकर, दुभगाकरं- दुर्भगाकर-सौभाग्यं को दुर्भाग्य करने वाली विद्या, गम्भाकरं - गर्भाधान की विद्या, मोहणकर - मोहनकर वाजीकरण विद्या, पागसासणि - पाक शासनी-इन्द्रजाल विधा, दवहोमं - द्रव्यहोम-हवन विद्या, चंदचरियं - चन्द्र चरित-चंद्रमा की गति आदि को बताने वाली विद्या, बहस्सइ चरियं - बृहस्पति चरित, उक्कापायं - उल्कापात, दिसादाहं - दिशादाह, मियचक्कं - मृगचक्र शास्त्र, वायस परिमंडलं - कौए आदि पक्षियों के शब्दों का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र पंसुवुट्टिपांसुवृष्टि-धूल की वर्षा का फल बताने वाला शास्त्र, वेतालिं - वैताली विद्या, ओसोवणिं - अवस्वापिनी, तालग्याडणिं - तालोद्घाटिनी, सोवागिं - श्वपाकी-चांडालों की विद्या, ओवतणिंअवपतनी, उप्पयणिं - उत्पतनी, जंभणिं - जृम्भणी, थंभणिं - स्तम्भनी; लेस]ि - श्लेषणी, आमयकरणिं - रोगी बनाने वाली, विसल्लकरणिं - विशल्यकरणी-नीरोग करने वाली, पक्कमणिंप्रक्रामणी-भूत दूर करने वाली, अंतद्धाणिं - अन्तर्धानी-अन्तर्धान होने की। .
भावार्थ - इस जगत् में प्रत्येक मनुष्यों की बुद्धि भिन्न भिन्न होती है । किसी को कोई वस्तु अच्छी लगती और किसी को कोई । आहार, विहार, शयन, आसन, भूषण, वस्त्र, यान, वाहन, गान और वाद्य आदि में सब की रुचि समान नहीं होती इसलिये एक जिसको पसन्द करता है दूसरा उसे
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