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अध्ययन १
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हो सकती ऐसी दशा में तो नाम मात्र का ही भेद होगा क्योंकि - हम जिसे कर्म कहते हैं उसे तुम नियति कहते हो परन्तु पदार्थ में कोई भेद नहीं रहता । विद्वानों ने कहा है कि -
"यदिह क्रियते कर्म तत् परत्रोपभुज्यते । मूलसिक्तेषु वृक्षेषु फलं शाखासु जायते" ॥१॥ "यदुपात्तमन्यजन्मनि शुभमशुभं वा स्वकर्मपरिणत्या ।
तच्छक्यमन्यथा नो कर्तुं देवासुरैरपि" ॥२॥
अर्थात् - वृक्ष का मूल सींचने से जैसे शाखा में फल उत्पन्न होता है इसी तरह इस जन्म में किये हुए कर्म का फल दूसरे जन्म में प्राप्त होता है ।। १ ।।
मनुष्य ने पूर्व जन्म में अपने कर्म के परिणाम से जो शुभ या अशुभ कर्म सञ्चय किया है उसे देवता और असुर कोई भी अन्यथा नहीं कर सकता है ।। २।।। _अतः कर्म को न मानना और नियति को सब का कारण कहना मिथ्या है । यद्यपि नियतिवाद तथा पूर्वोक्त ईश्वरकर्तृत्ववाद, आत्माऽद्वैतवाद पञ्चभूतवाद और शरीरात्मवाद मिथ्या है तथापि प्रबल मोहनीय कर्म के उदय से प्राणी इनमें आसक्त होते हैं । वे इस लोक से भ्रष्ट तथा परलोक से भी भ्रष्ट होकर अनन्त काल तक संसार में भ्रमण करते रहते हैं। ये पुरुष विषयरूपी कीचड़ में फंस कर स्वयं कष्ट भोगते हैं और दूसरे को भी दुःखी बनाते हैं। अतः ये चारों ही पुरुष उत्तम श्वेत कमल के समान राजा आदि को पुष्करिणी रूपी भवसागर से उद्धार करने में समर्थ नहीं होते हैं ।। १२ ।।
विवेचन - एकान्त नियतिवादी अपने शुभाशुभ कर्मों का उत्तरदायित्त्व अपने ऊपर न लेकर नियति पर (होनहार) पर डाल देता है। इसके कारण वह पुण्य, पाप, स्वर्ग, नरक आदि परलोक सुकृत, दुष्कृत, शुभ अशुभ आदि का विचार छोड़कर निःसंकोच पाप कार्यों में एवं कामभोगों में प्रवृत्त हो जाता है। इस प्रकार नियतिवादी इस लोक और परलोक से भ्रष्ट हो जाता है जबकि कर्म को मानने वाला पुरुषार्थी अशुभ कर्मों से तो दूर रहता है तथा पूर्व कृत अशुभ कर्मों का क्षय करने का पुरुषार्थ करता है और एक दिन सर्वकर्म क्षय रूप मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
से बेमि पाईणं वा ६ संतेगइया मणुस्सा भवंति तं जहा- आरिया वेगे, अणारिया वेगे, उच्चागोया वेगे, णीयागोया वेगे, कायमंता वेगे, हस्समंता वेगे, सुवण्णा वेगे, दुवण्णा वेगे, सुरूवा वेगे, दुरूवा वेगे।
तेसिं च णं खेत्तवत्थणि परिग्गहियाणि भवंति तं जहा-अप्पयरो वा भुजयरो वा। तेसिं च णं जण-जाणवयाइं परिग्गहियाइं भवंति, तं जहा-अप्पयरा वा, भुज्जयरा वा । तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिया । सो वा वि एगे णायओ (अणायओ) य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया ।
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