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अध्ययन ७
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गौतम स्वामी का यह प्रश्न सुनकर निग्रंथों ने कहा कि - नहीं उनका प्रत्याख्यान भंग नहीं हो सकता है क्योंकि उक्त पुरुषों ने साधु भाव में रहते हुए पुरुषों को ही न मारने का प्रत्याख्यान स्वीकार किया है परन्तु गृहस्थ भाव में रहने वालों को न मारने का प्रत्याख्यान नहीं किया है अतः गृहस्थ भाव में आये हुए भूतपूर्व श्रमणों को मारने से भी उनका प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। श्री गौतम स्वामी ने कहा किहे स्थविरो ! इसी तरह यह भी समझो कि-श्रमणोपासक ने त्रसभाव में आये हुए प्राणियों को मारने का त्याग किया है परन्तु स्थावरभाव में आये हुए को मारने का त्याग नहीं किया है अतः स्थावर भाव में आये हुए भूतपूर्व त्रस को मारने पर भी श्रावक का प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है ।
भगवं च णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्या-आउसंतो णियंठा ! इह खलु गाहावइ वा गाहावइपुत्तो वा तहप्पगारेहि कुलेहिं आगम्म धम्मं सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा?, हंता उवसंकमेज्जा, तेसिं च णं तहप्पगाराणं धम्म आइक्खियव्ये?, हंता आइक्खियव्ये, किं ते तहप्पगारं धम्म सोच्चा णिसम्म एवं वएज्जा-इंणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलियं पडिपुण्णं संसुद्धं णेयाउयं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं णिजाणमग्गं णिव्वाणमग्गं अवितहमसंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं, एत्यं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति, तमाणाए तहा गच्छामो तहा चिट्ठामो तहा णिसियामो तहा तुयट्ठामो तहा भुंजामो तहा भासामो तहा अब्भुट्ठामो तहा उट्ठाए उद्वेमोत्ति पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं संजमेणं संजमामोत्ति वएग्जा ?, हंता वएग्जा, किं ते तहप्पगारा कप्पंति पव्वावित्तए ?, हंता कप्पंति, किं ते तहप्पगारा कप्पंति मुंडावित्तए ?, हंता कप्पंति, किं ते तहप्पगारा कप्पंति सिक्खावित्तए ?, हंता कप्पंति, किं ते तहप्पगारा कप्पंति उवट्ठावित्तए ?, हंता कप्पंति, तेसिं च णं तहप्पगाराणं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खिते ?, हंता णिक्खित्ते, से णं एयारवेणं विहारेणं विहरमाणा जाव वासाइं चउपंचमाइं छहसमाई वा अप्पयरो वा भुजयरो वा देसं दूइज्जेत्ता अगारं वएजा ? हंता वएजा। तस्स णं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते ?, णो इणटे समडे, से जे से जीवे जस्स परेणं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं दंडे णो णिक्खित्ते, से जे से जीवे जस्स आरेणं सव्वपाणेहिं जाव सत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते, से जे से जीवे जस्स इयाणिं सव्वपाणेहि
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