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________________ अध्ययन ३ १०९ कठिन शब्दार्थ - अहीणं - सर्प, अयगराणं - अजगर, आसालियाणं - आशालिक । भावार्थ - सर्प और अजगर आदि प्राणी पृथ्वी के ऊपर छाती को घसीटते हुए चलते हैं इसलिये ये उर:परिसर्प कहलाते हैं। ये प्राणी भी अपनी उत्पत्ति के योग्य बीज और अवकाश को पाकर ही उत्पन्न होते हैं अन्यथा नहीं होते हैं। इनमें कोई अण्डा उत्पन्न करते हैं और कोई बच्चा पैदा करते हैं। ये प्राणी माता के गर्भ से निकल कर वायुकाय का आहार करते हैं जैसे मनुष्य आदि के बच्चे माता का दूध पीकर पुष्ट होते हैं इसी तरह ये प्राणी अपनी जाति के स्वभावानुसार वायु को पीकर पुष्टि का लाभ करते हैं। अहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं भुय-परिसप्प-थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा-गोहाणं णउलाणं सिहाणं सरडाणं सल्लाणं सरवाणं खंराणं घरकोइलियाणं विस्संभराणं मुसगाणं मंगुसाणं पइलाइयाणं बिरालियाणं जोहाणं चउप्पाइयाणं, तेसिं च णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए पुरिसस्स य जहा उरपरिसप्पाणं तहा भाणियव्वं जाव सारूविकडं संतं, अवरेऽवि य णं तेसिंणाणाविहाणं भुयपरिसप्प-पंचिंदियथलयरतिरिक्खजोणियाणं, तंजहा गोहाणं जावमक्खायं। - कठिन शब्दार्थ - गोहाणं - गोह, णउलाणं - नकुल, सरडाणं - सरट, खराणं - खर, घरकोइलियाणं - गृहकोकिल, पइलाइयाणं - पदलालित । . भावार्थ - जो प्राणी भुजा के बल से पृथिवी पर चलते हैं वे 'भुजपरिसर्प' कहलाते हैं। इनमें कई प्राणियों के नाम यहां शास्त्रकार ने बताये हैं। ये प्राणी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च हैं । इनमें कोई अण्डा देते हैं और कोई बच्चा पैदा करते हैं इनमें नकुल चूहा, गोह आदि जानवर प्रसिद्ध है। ये जीव अपने कर्म से प्रेरित होकर इन योनियों में जन्म धारण करते हैं ये प्राणी नाना प्रकार के वर्ण गन्ध वाले और अनेक प्रकार के शरीर वाले होते हैं। शेष बातें पूर्ववत् जाननी चाहिये। . अहावरं पुरक्खायं णाणाविहाणं खेचरपंचिंदिय-तिरिक्खजोणियाणं, तंजहाचम्मपक्खीणं, लोम-पक्खीणं, समुग्गपक्खीणं, विततपक्खीणं, तेसिंच णं अहाबीएणं अहावगासेणं इत्थीए जहा उरपरिसप्पाणं, णाणत्तं ते जाव डहरा समाणा माउगात्तसिणेहमाहारेंति आणुपुव्वेणं वुड्डा वणस्सइकायं तसथावरे य पाणे, ते जीवा आहारेंति पुढविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं णाणाविहाणं खेचरपंचिंदियतिरिक्ख जोणियाणं चम्मपक्खीणं जावमक्खायं ॥५७॥ " कठिन शब्दार्थ - चम्मपक्खीणं - चर्म पक्षी, लोम-पक्खीणं- रोम पक्षी, समुग्गपक्खीणं - समुद्ग पक्षी, विततपक्खीणं - वितत पक्षी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004189
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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