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अध्ययन १ उद्देशक ४
सिए य विगयगेही, आयाणं सम्मं रक्खए । चरियासणसेज्जासु, भत्तपाणे य अंतसो ॥११॥
कठिन शब्दार्थ - वुसिए - व्युषित - स्थित, विगयगेही - विगत गृद्धि-गृद्धि रहित, आयाणं - आदानीय-ग्रहण करने योग्य, सम्मं - सम्यक् प्रकार से, रक्खए - रक्षा करे, चरियासणसेज्जासुचलने फिरने. बैठने और सोने में, भत्तपाणे- भात पानी के विषय में । . भावार्थ - दस प्रकार की साधु समाचारी में स्थित आहार आदि में गृद्धिरहित मुनि, ज्ञान दर्शन और चारित्र की अच्छी तरह से रक्षा करे एवं चलने, फिरने, बैठने और सोने तथा भात पानी के विषय में सदा उपयोग रखे।
विवेचन - भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशक ७ तथा ठाणाङ्ग सूत्र १० और उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २६ में दस समाचारी का वर्णन है। साधु के आचरण को अथवा अच्छे आचरण को समाचारी कहते हैं । इसके दस भेद हैं। यथा -
१. इच्छाकार - 'यदि आपकी इच्छा हो तो मैं अमूक कार्य करूं' अथवा 'मैं आपका यह कार्य करूं' इस प्रकार गुरु महाराज से पूछना इच्छाकार समाचारी है।
२.मिच्छाकार (मिथ्याकार)- संयम का आचरण करते हुये कोई विपरीत आचरण हो गया हो तो उस पाप के लिये पश्चात्ताप करता हुआ साधु कहता है 'मिच्छामि दुक्कडं' अर्थात् मेरा यह पाप निष्फल हो। इसे मिच्छाकार समाचारी कहते हैं । ... ३. तथाकार - सूत्र आदि आगम के विषय में गुरु महाराज को कुछ पूछने पर वे उत्तर दें तब तथा व्याख्या आदि के समय 'तहत्ति' (जैसा आप फरमाते हैं वह ठीक है) कहना तथाकार समाचारी है।
४. आवश्यकी - उपाश्रय से बाहर निकलते समय साधु को) 'आवस्सिया' (आवश्यकी) कहना चाहिये अर्थात् मैं आवश्यक कार्य के लिये बाहर जा रहा हूँ।
५. निसीहिया (नषेधिकी)- बाहर से वापस आकर उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'निसीहिया' कहना चाहिये अर्थात् अब मुझे बाहर जाने का कोई काम नहीं है। इस प्रकार दूसरे कार्य का निषेध करना।
६. आपृच्छना - किसी कार्य में प्रवृत्ति करने से पहले 'क्या मैं यह कार्य करूं' इस प्रकार गुरु महाराज से पूछना।
७. प्रतिपृच्छना - गुरु ने पहले जिस काम का निषेध कर दिया है इसी कार्य में आवश्यकतानुसार फिर प्रवृत्त होना हो तो गुरु से दुबारा पूछना 'भगवन् ! आपने पहले इस कार्य के लिए मना किया था किन्तु यह जरूरी है आप फरमावें तो करूं' ऐसा पूछना प्रतिपृच्छना है।
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