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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १
कठिन शब्दार्थ - समालवेजा - विस्तृत रूप से कहे, पडिपुण्णभासी - प्रतिपूर्णभाषी, णिसामिया - सुन कर, समिया- सम्यक् प्रकार से, अट्ठदंसी - अर्थ को जानने वाला, आणाइ - आज्ञा से, अभिउंजे - बोले, अभिसंधए - निर्दोष वचन बोले । ___ भावार्थ - जो अर्थ थोड़े शब्दों में कहने योग्य नहीं है उसे साधु विस्तृत शब्दों में कहकर समझावे तथा साधु गुरु से पदार्थ को सुनकर उसे अच्छी तरह समझकर आज्ञा से शुद्ध वचन बोले । साधु पाप का विवेक रखता हुआ निर्दोष वचन बोले ।
विवेचन - शास्त्रकार का जो गूढ़ रहस्य हैं उसको इस तरह विस्तार करके समझाने का प्रयत्न करें कि वह श्रोता के समझ में आ जाए।
अहाबुइयाई सुसिक्खएग्जा, जइजय णाइवेलं वएग्जा । से दिट्ठिमं दिढेि ण लूसएग्जा, से जाणई भासिहं तं समाहि ॥ २५ ॥
कठिन शब्दार्थ - अहाबुइयाइं - यथोक्त-तीर्थकर गणधरों के वचन को, सुसिक्खएज्जा - सम्यक् प्रकार से सीखे, जइज्जय- सदैव प्रयत्न करे, अइवेलं - मर्यादा का उल्लंघन कर, दिट्ठिमं - दृष्टिमान् (सम्यग्-दृष्टि) दिदि- सम्यग् दर्शन को, लूसएज्जा - दूषित करे। .
भावार्थ - साधु तीर्थंकर और गणधर के वचनों का सदा अभ्यास किया करे तथा उनके उपदेशानुसार ही वचन बोले । वह मर्यादा का उल्लंघन करके अधिक न बोले । सम्यग्दृष्टि साधु सम्यग्दर्शन को दूषित न करे । जो साधु इस प्रकार उपदेश करना जानता है वही सर्वज्ञोक्त भावसमाधि को जानता है एवं प्राप्त करता है।
विवेचन - मुनि नया-नया ज्ञान सीखने में निरन्तर पुरुषार्थ करता रहे जैसा कि कहा है - खीण निकम्मो रहणो नहीं, करणो आतमकाम । भणणो गुणणो सीखणो, रमणो ज्ञान आराम ॥
- मुनि प्रतिलेखन, स्वाध्याय, ध्यान आदि सब क्रियाएं यथा समय करे किन्तु मर्यादा का उल्लंघन न करे, सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप भाव समाधि को प्राप्त करे॥ २५ ॥
अलूसए णो पच्छण्ण-भासी, णो सुत्तमत्थं च करेज ताई। सत्यार-भत्ती अणुवीइ वायं, सुयं च सम्मं पडिवाययंति ॥ २६ ॥
कठिन शब्दार्थ - अलूसए - दूषित न करे, पच्छण्णभासी- प्रच्छन्नभाषी-सिद्धान्त को छिपाने वाला, सुत्तमात्य - सूत्र और अर्थ को, सत्यार भत्ती - गुरु की भक्ति का, अणुवीइ - सोच विचार कर, परिवापति - प्रतिपादन करे । .
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