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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १
और देखकर जो संयम मार्ग फरमाया है उसमें समिति गुप्ति से युक्त होकर एवं प्रमाद रहित होकर शुद्ध संयम का पालन करे।। २६ ॥
णिसम्म से भिक्खू समीहियटुं, पडिभाणवं होइ विसारए य । आयाण-अट्ठी वोदाण-मोणं, उवेच्च सुद्धेण उवेइ मोक्खं ॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - णिसम्म - सुन कर, समीहियटुं - समीहितार्थ-इष्ट अर्थ, पडिभाणवं - प्रतिभानवान् , आयाणट्ठी - आदान (ज्ञान आदि का) अर्थी, वोदाण - तप, मोणं - संयम को, उवेच्च - प्राप्त करके, सुरेण - शुद्ध आहार के द्वारा, उवेइ - प्राप्त करता है, मोक्खं - मोक्ष को ।
भावार्थ - गुरुकुल में निवास करनेवाला साधु उत्तम साधु के आचार को सुन कर और अपने इष्ट अर्थ मोक्ष को जान कर बुद्धिमान् और अपने सिद्धान्त का वक्ता हो जाता है तथा सम्यग्ज्ञान आदि से ही प्रयोजन रखता हुआ वह तप और संयम को प्राप्त करके शुद्ध आहार के द्वारा मोक्ष को प्राप्त करता है ।
संखाइ धम्मं च वियागरंति, बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति । .
ते पारगा दोण्ह वि मोयणाए, संसोधियं पण्हमुदाहरंति ॥१८॥ ___ कठिन शब्दार्थ - संखाइ - जान कर, वियागरंति - उपदेश करते हैं, अंतकरा - अंत करने वाले, पारगा - पार करने वाले, दोण्ह - दोनों को-अपने और दूसरे को, मोयणाए - कर्मों से मुक्त कराने के लिए, संसोधियं - संशोधित, पण्हं - प्रश्न का उदाहरंति - उत्तर देते हैं ।
- भावार्थ - गुरुकुल में निवास करने वाले पुरुष सद्बुद्धि से धर्म को समझ कर दूसरे को उसका उपदेश करते हैं । तथा तीनों कालों को जानने वाले वे पुरुष पूर्वसंचित कर्मों का अन्त करते हैं। वे पुरुष अपने और दूसरे को कर्मपाश से मुक्त करके संसार से पार हो जाते हैं । वे पुरुष सोच विचार कर प्रश्न का उत्तर देते हैं।
विवेचन - गाथा में 'संखाइ' शब्द दिया है उसका अर्थ है अच्छी तरह से पदार्थ को जानना अर्थात् उत्तम बुद्धि । गुरु की सेवामें रहने वाला शिष्य धर्म के तत्त्व को अच्छी तरह से समझकर फिर दूसरों को उपदेश देता है एवं पूछे हुए प्रश्न को अच्छी तरह से समझकर उत्तर देता है वह गीतार्थ पुरुष अपनी आत्मा का कल्याण तो करता ही है साथ ही दूसरे प्राणियों को भी संसार सागर से पार कराने में समर्थ होता है ॥ १८ ॥
णो छायए णो वि य लूसएग्जा, माणं ण सेवेज्ज पगासणं च । ण यावि पण्णे परिहास कुण्जा, ण याऽऽसियावायं वियागरेजा ॥ १९ ॥
कठिन शब्दार्थ - छायए - छिपावे, लूसएज्जा - अपसिद्धान्त का निरूपण करे, पगासणं - प्रकाश करे, परिहास - हंसी, कुजा- करे, आसियावायं - आशीर्वचन, विपागरेणा - कहे ।
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