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अध्ययन १२
.. . २८१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000
"पण्णति वीरा य भवंति एगे" ऐसा पाठ भी मिलता है। जिसका अर्थ है - कोई गुरुकर्मी अल्पपराक्रमी जीव ज्ञान मात्र से वीर बनते हैं परन्तु आचरण से नहीं परन्तु ज्ञान मात्र से इष्ट साध्य की सिद्धि नहीं होती है। जैसा कि कहा है -
"अधीत्य शास्त्राणि भवन्ति मूर्खाः, यस्तु क्रियावान् पुरुषः स विद्वान्। संचिन्त्यतामौषधमातुरं हि, न ज्ञानमात्रेण करोत्यरोगम् ॥"
अर्थात् - शास्त्र पढ़कर भी कोई मूर्ख रह जाते हैं अर्थात् आचरण रहित रह जाते हैं, किन्तु जो पुरुष शास्त्रोक्त क्रिया का आचरण करता है वहीं पंडित है क्योंकि अच्छी तरह से जानी हुई भी औषधी ज्ञान मात्र से रोग की निवृत्ति नहीं करती है। अतः मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान और क्रिया दोनों की आवश्यकता है।। १७॥
डहरे य पाणे वुड्ढे य पाणे, ते आत्तओ पासइ सव्वलोए। . उव्वेहइ लोगमिणं महंतं, बुद्धेऽपमत्तेसु परिव्वएज्जा ॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - डहरे - छोटे, वुड्डे - वृद्ध-बड़े, आत्तओ - आत्मा के समान, उव्वेहइ - समझता है, अपमत्तेसु - अप्रमत्त पुरुषों (साधुओं) के पास, परिव्वएज्जा - संयम धारण करें । ... भावार्थ - इस जगत् में छोटे शरीर वाले भी प्राणी हैं और बड़े शरीर वाले भी प्राणी हैं इन प्राणियों को अपने समान समझ कर तत्त्वदर्शी पुरुष संयम पालने वाले साधुओं के निकट जाकर दीक्षा ग्रहण करे ।
विवेचन - यह संसार सूक्ष्म-बादर अर्थात् छोटे व बड़े प्राणियों से भरा हुआ है सबको सुख प्रिय हैं. दुःख कोई भी नहीं चाहता। सभी प्राणियों के स्थान अनित्य हैं तथा दुःख भरे इस संसार में सुख
का लेश भी नहीं है। ऐसा मानकर वे शुद्ध संयम का पालन करते हैं। एवं ऐसे शुद्ध संयमी साधुओं के • पास दीक्षा अंगीकार करते हैं। वे अपनी आत्मा का कल्याण साध लेते हैं। अतः ऐसे शुद्ध संयमी साधुओं के पास ही दीक्षा अंगीकार करनी चाहिए।
जे आयओ परओ वा विणच्चा, अलमप्पणो होइ अलं परेसिं।... तं जोइभूतं च सयावसेज्जा, जे पाउकुज्जा अणुवीइ धम्मं ॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - आयओ - स्वतः (स्वयं), परओ - परतः (दूसरे से), अलं- समर्थ, जोइभूतं - ज्योर्तिभूत, सया - सदा, वसेजा - निवास करे, पाउकुज्जा - प्रकट करे, अणुवीइ - सोच विचार कर ।
भावार्थ - जो स्वयं या दूसरे के द्वारा धर्म को जानकर उसका उपदेश देता है वह अपनी तथा
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