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अध्ययन १२
२७७
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पाश्चवा
सकता है इसी तरह जिनके ज्ञान पर पर्दा पडा हुआ है ऐसे अक्रियावादी विद्यमान भी घटपटादि पदार्थों को नहीं देख सकते हैं ।
विवेचन - सर्वशून्यतावादी जगत् की वस्तुओं को माया, स्वप्न और इन्द्रजाल के समान मानता है, किन्तु यह अटल नियम है कि वास्तविक वस्तु के होने पर ही कल्पना की जा सकती है। किसी भी वस्तु का अत्यन्त तुच्छ रूप अभाव नहीं है, क्योंकि अभाव रूप से जो शशविषाण (खरगोश के सींग) कूर्म रोम (कछुए के केश) और गगनारविन्द (आकाश के कमल) आदि शब्दों में दो-दो शब्दों का समास है, इसलिए समासवाची शब्द संसार में मिल भी सकते हैं और नहीं भी मिल सकते हैं किन्तु प्रत्येक पदवाच्य अर्थात् बिना समास का शब्द का वाच्य अवश्य हैं जैसे कि - खरगोश है, सींग (गाय आदि के) हैं इसी प्रकार कछुआ है तथा केश (गाय मनुष्य आदि के) हैं तथा आकाश है और अरविन्द अर्थात् कमल भी है। इसी तरह संसार के समस्त पदार्थों का अस्तित्व हैं, सर्वशून्य नहीं है।
संवच्छरं सुविणं लक्खणं च, णिमित्तं देहं च उप्पाइयं च ।
अटुंग-मेयं बहवे अहित्ता, लोगंसि जाणइ अणागयाइं ॥९॥ .. कठिन शब्दार्थ - संवच्छरं - संवत्सर (ज्योतिष) सुविणं - स्वप्न, लक्खणं - शारीरिक लक्षण, णिमित्तं - निमित्त, देहं - शरीर के तिल आदि, उप्पाइयं - औत्पातिक उत्कापात आदि, अटुंग - आठ अंग वाले, अहित्ता - पढ़ कर, अणागयाइं- भविष्य की बातों को।
भावार्थ - जगत् में बहुत से पुरुष ज्योतिष शास्त्र, स्वप्नशास्त्र, लक्षणशास्त्र, निमित्तशास्त्र, शरीर के तिल आदि का फल बतानेवाला शास्त्र और उल्कापात तथा दिग्दाह आदि का फ शास्त्र, इन आठ अङ्गों वाले शास्त्रों को पढ़ कर भविष्य में होने वाली बातों को जानते हैं ।
विवेचन - शून्यवाद में सर्वशून्यता का कथन है, उनके मत में भौम, उत्पात, स्वप्न, आन्तरिक्ष, आङ्ग, स्वर, लक्षण, व्यञ्जन तथा नवमा निमित्त शास्त्र है, इनको पढ़कर लोग इस लोक में भूत और भविष्य की बातों को जान लेते हैं और आजीविका चलाते हैं। परन्तु शून्यवाद मानने पर यह सब घटित नहीं हो सकता है
केई णिमित्ता तहिया भवंति, केसिंचि तं विप्पडिएइ णाणं । ते विज भावं अणहिज्जमाणा, आहंसु विजापरिमोक्ख-मेव ॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - केई - कुछ, तहिया - सत्य, विप्पडिएइ - विपरीत होता है, विजभावं - विद्या के भाव को, अणहिजमाणा - नहीं जानते (पढ़ते) हुए, विजापरिमोक्खमेव- विद्या के त्याग को ही।
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