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अध्ययन ९
२३५ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 स्वामी ने संसार समुद्र से पार करने में समर्थ श्रुत चारित्र रूप धर्म तथा जीवादि पदार्थों का उपदेश दिया है ।। २४ ।।
भासमाणो ण भासेज्जा, णेव वंफेज मम्मयं । माइहाणं विवज्जेज्जा, अणुचिंतिय वियागरे।।२५॥
कठिन शब्दार्थ - भासमाणो - बोलता हुआ, मम्मयं - मर्मकारी वचन, वंफेज - बोले, अभिलाषा करे, माइट्ठाणं - मातृ स्थान-माया को, विवजेजा - वर्जन करे, अणुचिंतिय - सोच विचार कर, वियागरे - बोले ।
भावार्थ - जो साधु भाषासमिति से युक्त है वह धर्म का उपदेश करता हुआ भी न बोलने वाले के समान ही है । जिससे किसी को दुःख हो ऐसा वाक्य साधु न बोले । साधु कपटभरी बात न बोले किन्तु सोच विचार कर बोले । -- विवेचन - जो साधु भाषासमिति से युक्त है वह धर्म कथा का उपदेश करता हुआ भी अभाषक (मौनी-नहीं बोलने वाले) के समान ही है जैसा कि कहा है -
वयणविहत्तीकुसलोवओगयं बहुविहं वियाणंतो । . दिवसंपि भासमाणो साहू वयगुत्तयं पत्तो ।।
छाया - वचनविभक्तिकुशलो वचोगतं बहुविधं विजानन् । दिवसमपि भाषमाणः साधुर्वचनगुप्ति सम्प्राप्तः ।।
अर्थ - जो साधु वचन के विभाग को जानने में निपुण है तथा वाणी विषयक बहुत भेदों को जानता है । वह दिन भर बोलता हुआ भी वचनगुप्ति से युक्त ही है । साधु पीड़ाकारी, मर्मकारी, परवञ्चनकारी वचन न बोले । ।
"पुव्विं बुद्धीए पेहित्ता, पच्छा वक्कमुदाहरे" अर्थ - साधु पहले बुद्धि से सोच लेवे पीछे वचन बोले । जैसा कि कहा है - वचन रत्न अमोल है, मिले न लाखों मोल ।
पहले हृदय विचारिके, फिर मुख बाहर बोल ।। . तत्थिमा तइया भासा, जं वदित्ताऽणुतप्पइ ।
जं छण्णं तं ण वत्तव्वं, एसा आणा णियंठिया ॥ २६॥
कठिन शब्दार्थ - वदित्ता - कह कर, अणुतप्पइ - पश्चात्ताप करना होता है, छण्णं - छिपाने योग्य, आणा - आज्ञा, णियंठिया - निग्रंथ की ।
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