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________________ २३२ - श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ अथवा निरर्थक विवाद करना इसको भी हस्तकर्म कहते हैं । इन सब बातों को संसार परिभ्रमण का कारण जानकर साधु सर्वथा त्याग कर दे ।। १७ ।। पाणहाओ य छत्तं च, णालीयं वालवीयणं । परकिरियं अण्णमण्णं च, तं विजं परिजाणिया॥१८॥ .. कठिन शब्दार्थ - पाणहाओ - उपानह-जूता, छत्तं - छाता, णालीयं - नालिका (जुआ खेलना.) वालवीयणं - पंखे से हवा करना, परिकिरियं - परक्रिया, अण्णमण्णं - परस्पर की। भावार्थ - जूता पहनना, छत्ता लगाना, जुआ खेलना, पंखे से पवन करना तथा जिसमें कर्मबन्ध हो ऐसी परस्पर की क्रिया, इनको कर्म बन्ध का कारण जानकर विद्वान् मुनि त्याग कर दे। विवेचन - गाथा में 'पाणहाओ' शब्द दिया है जिसका अर्थ जूता, बूंट, चप्पल, खडाऊ, मोजा. आदि होता है । नालिका - जुआ का एक भेद हैं । बालवीयण' शब्द का अर्थ मोर की पांख आदि से बना हुआ पंखा है । इन सब का आचरण करना साधु के लिये अनाचार का कारण है अतः साधु इनका सर्वथा त्याग कर दे ।। १८ ।। उच्चारं पासवणं, हरिएसु ण करे मुणी। वियडेण वावि साहट्ट, णावमजे कयाइ वि । १९। कठिन शबदार्थ - उच्चारं - मल, पासवणं - प्रस्रवण-मूत्र, हरिएसु - हरी वनस्पति पर, वियडेण - अचित्त जल से, ण - नहीं, अवमज्जे - आचमन करे, साहट्ट - हटा कर । भावार्थ - साधु हरी वनस्पति वाले स्थान पर टट्टी या पेशाब न करे एवं बीज आदि हटा कर अचित्त जल से भी आचमन न करे। . विवेचन - टट्टी जाने के बाद मलद्वार को पानी से धोकर साफ करने को 'आचमन' कहते हैं । साधु सचित्त वनस्पति पर बीजों पर एवं अयोग्य स्थान पर मलमूत्र का त्याग न करे तथा आचमन भी न करे ।। १९॥ . . परमत्ते अण्णपाणं, ण भुंजेज कयाइ वि । परवत्थं अचेलो वि, तं विजं परिजाणिया ॥२०॥ कठिन शब्दार्थ - परमत्ते - गृहस्थ के पात्र में, अचेलो - अचेल-वस्त्र रहित, परवत्थं - गृहस्थ का वस्त्र । . भावार्थ - साधु गृहस्थ के बर्तन में भोजन न करे तथा जल न पीवे एवं वस्त्ररहित होने पर भी साधु गृहस्थ का वस्त्र न पहिने। क्योंकि ये सब संसारभ्रमण के कारण हैं इसलिये विद्वान् मुनि इनका त्याग कर दे। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004188
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages338
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size7 MB
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