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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 की है । वनस्पतिकाय के मूल, कन्द, स्कन्ध, शाखा, प्रशाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज ये दस भेद किये हैं इनमें संख्यात असंख्यात और अनन्त जीव होते हैं । जो मनुष्यं अपने आहार के लिये तथा शरीर की वृद्धि के लिये यावत् अपने सुख के लिये जो इनका छेदन भेदन करता है वह पापकर्म उपार्जन करता है । इन जीवों का विनाश करने से दया न होने के कारण न तो धर्म होता है और न ही आत्मा को सुख की प्राप्ति ही होती है । इसलिये ज्ञानी पुरुष फरमाते हैं कि इन जीवों की हिंसा नहीं करनी चाहिए।
जाइं च बुष्टिं च विणासयंते, बीयाइ अस्संजय आयदंडे। अहाहु से लोए अणजधम्मे, बीयाइ जे हिंसइ आयसाए ॥ ९ ॥
कठिन शब्दार्थ - जाई - उत्पत्ति, वुद्दि - वृद्धि, विणासयंते- विनाश करता है, बीयाइ - बीज का, अस्संजय - असंयत, आयदंडे - आत्मदंड-अपने आप को दंडित करने वाला, अणजधम्मे - अनार्य धर्म वाला।
भावार्थ - जो पुरुष अपने सुख के लिये बीज का नाश करता है वह उस बीज के द्वारा होने वाले अंकुर तथा शाखा पत्र पुष्प फल आदि वृद्धि का भी नाश करता है । वस्तुतः वह पुरुष उक्त पाप के द्वारा अपने आत्मा को दण्ड का भागी बनाता है । तीर्थंकरों ने ऐसे पुरुष को अनार्य धर्मवाला कहा है।
विवेचन - जो पुरुष हरी वनस्पति का छेदन भेदन करता है वह इस वनस्पति के द्वारा होने वाली दूसरी वनस्पति की उत्पत्ति यथा - अङ्कर, पत्र, पुष्प यावत् फल और बीज का भी विनाश करता है । वह पुरुष अपनी आत्मा को दण्ड देने वाला है । वह दूसरे प्राणी का नाश करके वास्तव में अपनी आत्मा का ही विनाश करता है । जो पुरुष धर्म का नाम लेकर अथवा अपने सुख के लिये वनस्पतिकाय का विनाश करता है । वह चाहे परिव्राजक रूप पाषण्डी हो चाहे गृहस्थ हो वह अनार्य धर्म वाला है ।
गब्भाइ मिजंति बुयाबुयाणा, णरा परे पंचसिहा कुमारा। जुवाणगा मज्झिम थेरगा य, चयंति ते आउखए पलीणा ।। १० ॥
कठिन शब्दार्थ - गब्भाइ - गर्भ में ही, मिजंति - मर जाते हैं, बुयाबुयाणा - बोलने और नहीं बोलने की स्थिति में, पंचसिहा कुमारा - पंच शिखावाले कुमार, जुवाणगा - युवा, मझिम - मध्यम थेरगा - वृद्ध, आउखए - आयु क्षीण होने पर, पलीणा - प्रलीन हो जाते हैं ।
भावार्थ - हरी वनस्पति आदि का छेदन करने वाले पुरुष पाप के कारण कोई गर्भावस्था में ही मर जाते हैं, कोई स्पष्ट बोलने की अवस्था में तथा कोई बोलने की अवस्था आने के पहले ही मर जाते हैं । एवं कोई कुमार अवस्था में, कोई युवा होकर, कोई आधी उमर का होकर, कोई वृद्ध होकर मर जाते हैं आशय यह है कि वे हर एक अवस्था में मत्य को प्राप्त होते हैं ।
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