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कुशील परिभाषा नामक सातवाँ अध्ययन
पिछले अध्ययन में भगवान् की स्तुति के द्वारा शील का आदर्श उपस्थित किया गया था अब इस अध्ययन में कुशील का वर्णन एवं उसका फल बताया जायगा । .
पुढवी य आऊ अगणी य वाऊ, तण रुक्ख बीया य तसा य पाणा। जे अंडया जे य जराउ पाणा, संसेयया जे रसयाभिहाणा ॥१॥ एयाइं कायाइं पवेइयाइं, एएसु जाणे पडिलेह सायं। एएण कारण य आयदंडे, एएसु या विप्परियासमुविंति ॥ २ ॥
कठिन शब्दार्थ - पुढवी - पृथ्वी, आऊ - अप्-पानी, अगणी - अग्नि, वाऊ - वायु, तणतृण, रुक्ख - वृक्ष, बीया- बीज, तसा - त्रस, पाणा - प्राणी, अंडया - अंडज, जराउ - जरायुज, संसेयया - संस्वेदज, रसयाभिहाणा - रसज-रस में उत्पन्न होने वाले, सायं - साता-सुख, जाणजानो, पडिलेह - देख, आयदंडे - आत्मा को दंड देते हैं, विप्परियासमुविंति - विपर्यास-जन्म मरण को प्राप्त होते हैं। - भावार्थ - पृथिवी, जल, तेज, वायु, तृण, वृक्ष, बीज और त्रस तथा अण्डज (पक्षी आदि) जरायुज (मनुष्य, गाय आदि) संस्वेदज और रसज (रस चलित होने पर उस रस में उत्पन्न होने वाले) इनको सर्वज्ञ पुरुषों ने जीव का शरीर कहा है इसलिये इनमें सुख की इच्छा रहती है यह जानना चाहिये। जो जीव इन शरीर वाले प्राणियों का नाश करके पाप सञ्चय करते हैं वे बार बार इन्हीं प्राणियों में जन्म धारण करते हैं। .
विवेचन - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेऊकाय, वायुकाय इनके सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त चार चार भेद होते हैं । वनस्पति के सूक्ष्म, साधारण और प्रत्येक इन तीन के पर्याप्त और अपर्याप्त ऐसे छह भेद होते हैं । इन्हें स्थावर कहते हैं । बेइन्द्रियं तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय इनको अस कहते हैं । अण्डे से उत्पन्न होने वाले पक्षी आदि को अण्डज कहते हैं और जरायु अर्थात् जम्बाल से वेष्टित होकर उत्पन्न होने वाले जीवों को जरायुज कहते हैं । जैसे - गाय, बैल, बकरी, भेड़ और मनुष्य आदि । स्वेद का अर्थ है पसीना । पसीने से उत्पन्न होने वाले जीवों को संस्वेदज कहते हैं जैसे जूं, लीख, खटमल आदि । दूध, दही, घी, मीठा आदि किसी भी प्रकार का रस विकृत हो जाने पर इनमें जो जीव पैदा होते हैं उन्हें रसज कहते हैं वे सब प्राणी हैं । वे सभी सुख की इच्छा करते हैं, दुःख सब को अप्रियं है । यह जानकर सूक्ष्म बुद्धि से विचार करो कि इन प्राणियों को पीड़ा पहुंचाने से
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