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________________ अध्ययन १८५ अध्यवसाय वाले मुनि मोक्ष में नहीं जा सके, किन्तु सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न हुए । वे लवसप्तम देव कहलाते हैं। देवों के इन्द्र ६४ हैं यथा - भवनपति के २०, वाणव्यन्तर के ३२, ज्योतिषी के २ और वैमानिक के १० । इन ६४ इन्द्रों में से प्रत्येक के पांच पांच सभाएं होती हैं । यथा - १. उपपात सभा- जहां जाकर जीव देवरूप से उत्पन्न होता है । २. अभिषेक सभा - जहां इन्द्र का राज्याभिषेक किया जाता है । ३. अलङ्कार सभा - जिसमें देव, इन्द्र को अलङ्कार आभूषण पहनाते हैं । ४. व्यवसाय सभा - जिसमें पुस्तकें रखी हुई होती हैं, उसे पढ़ कर तत्त्वों का निश्चय किया जाता है । ५. सुधर्मा सभा - जहां इन्द्र, सामानीक, त्रायस्त्रिंश, पारिषद्य आदि एकत्रित होकर विचार चर्चा आदि करते हैं । इन पांच सभाओं में सुधर्मा सभा सर्वश्रेष्ठ है । . संसार में जितने भी मत मतान्तर हैं, वे सब अपने क्रिया का अन्तिम फल मोक्ष बताते हैं क्योंकि ३६३ पाखण्ड मत वाले कुप्रावचनिक भी अपने मत का फल मोक्ष ही बतलाते हैं इसी तरह श्रमण भगवान् महावीर स्वामी इन सब ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ हैं । "हहुस्स अनवगप्पस्स, णिरुवकिट्ठस्स जंतुणो । - एगे ऊसासणिस्सासे, एस पाणुत्ति वुच्चइ ॥" "सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोराणि से लवे । लवाणं सत्तहत्तरि, एस मुहते वियाहिए"त्ति ॥ अर्थ- हृष्ट अर्थात् सन्तुष्ट चित्त वाले, तीसरे चौथे आरे के जन्मे हुए तरुण पुरुष एवं नीरोग शरीर (जिसको पहले भी कभी कोई रोग नहीं आया और वर्तमान में भी कोई रोग नहीं है) वाले पुरुष के एक उच्छवास एक निश्वास को एक पाणु कहते हैं । सात पाणु का एक स्तोंक होता है । सात स्तोक का एक लव होता है और ७७ लव का एक मुहूर्त होता है । प्रश्न- एक मुहूर्त में कितने श्वासोच्छवास होते हैं ? उत्तर- . - तिण्णिसहस्सा सत्तय, सयाइं तेवत्तरिच उच्छासा। एस मुहुत्तो भणिओ, सव्वेहि अनंतनाणीहि ॥ अर्थ- एक मुहूर्त के अन्दर ३७७३ श्वासोच्छवास होते हैं । ऐसा अनन्तज्ञानी तीर्थकर भगवन्तों ने फरमाया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004188
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages338
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size7 MB
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