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________________ अध्ययन ६ १८१ विवेचन - "स्वपरानुग्रहार्थम् अर्थिने दीयते इति दानम्" अथवा " स्व स्वत्व निवृत्तिपूर्वक पर स्वत्वोत्पादनम् दानं" अर्थ - स्व और पर के अनुग्रह के लिये जो दिया जाता है अथवा अपने अधिकार को हटाकर उस वस्तु पर दूसरे का अधिकार कर देना उसको दान कहते हैं। ठाणाङ्ग सूत्र के दसवें ठाणे में दान के दस भेद बतलाये गये हैं यथा - .. १. अनुकम्पा दान २. संग्रह दान ३. भय दान ४. कारुण्य दान ५. लज्जा दान ६. गौरव दान ७. अधर्म दान ८. धर्म दान ९. करिष्यति दान १०. कृत दान टीकाकार ने इन दानों की विस्तृत व्याख्या की है। अपेक्षा से धर्मदान सर्वोपरी है। तथापि यहाँ पर इस गाथा में "दाणाण सेटुं अभयप्पयाणं" . अर्थात् दानों में अभयदान सर्वश्रेष्ठ है। . ... भय से भयभीत बने हुए प्राणी की प्राण रक्षा करना अभयदान कहलाता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र के प्रारम्भ में ही गणधर भगवन्तों ने फरमाया है - '"सव्वजगजीवरक्खणदयट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं।" - अर्थ - तीर्थंकर भगवन्तों ने जगत् के समस्त जीवों की रक्षा रूप दया के लिये प्रवचन अर्थात् द्वादशाङ्ग रूप वाणी का कथन किया है। भगवान् के प्रवचनों का अनुसरण करते हुए संस्कृत कवि ने भी कहा है कि - जीवानां रक्षणं श्रेष्टं, जीवाः जीवितकांक्षिणः । तस्मात् समस्त दानेभ्योऽभयदानं प्रशस्यते ॥ अर्थ - जीवों की रक्षा करना श्रेष्ठ है क्योंकि सभी जीव जीना चाहते हैं इसीलिये सब दानों में अभयदान सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। एकतः काञ्चनो मेरुः, बहुरत्ना वसुन्धरा। ... एकतोभयभीतस्य प्राणिनः प्राणरक्षणम्॥ - अर्थ - सोने का मेरु पर्वत और बहुत रत्नों से भरी हुई सारी पृथ्वी का दान एक तरफ रख दिया जाय और दूसरी तरफ भय से डरे हुए प्राणी के प्राणों की रक्षा की जाय तो उपरोक्त दोनों दानों से प्राण रक्षा करने रूप दान बढ़ जाता है। दीयते प्रियमाणस्य, कोटि जीवितमेव वा। धनकोटिं परित्यज्य, जीवो जीवितुमिच्छति॥ अर्थ - मृत्यु को प्राप्त होते हुए प्राणी को एक करोड़ मोहरें इनाम दी जाय और दूसरी तरफ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004188
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages338
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size7 MB
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