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अध्ययन ५ उद्देशक १
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उस नाव पर पहले से बैठे हुए परमाधार्मिक उन 'बिचारे नैरयिक जीवों के कण्ठ में कील चुभोते हैं, अतः वैतरणी के दुःख से जो पहले ही स्मृति हीन हो चुके हैं वे नैरयिक जीव इस दुःख से और अधिक स्मृतिहीन हो जाते हैं वे उस समय अपने शरण का कोई मार्ग नहीं देख पाते हैं। कई नरकपाल (परमाधार्मिक) अपने चित्त का विनोद करने के लिये नैरयिक जीवों को शूल और त्रिशूल से बींध कर नीचे पृथ्वी पर पटक देते हैं ।
केसिं च बंधित्तु गले सिलाओ, उदगंसि बोलंति महालयंसि। कलंबुया वालु य मुम्मुरे य, लोलंति पच्चंति य तत्थ अण्णे ॥ १० ॥
कठिन शब्दार्थ - बंधित्तु - बांध कर, सिलाओ - शिला, बोलंति - डूबोते हैं, महालयंसि - अथाह, अगाध, कलंबुयावालु- अति तप्त बालु में, मुम्मुरे - मुर्मुराग्नि में, लोलंति - फेरते हैं, पच्चंति - पकाते हैं । . भावार्थ - नरकपाल किन्हीं नैरयिक जीवों के गले में शिला बांधकर अगाध जल में डुबाते हैं और दूसरे नरकपाल अतितप्त वालुका में और मुर्मुराग्नि में उन नैरयिक जीवों को इधर उधर घसीटते हैं और पकाते हैं ।
असूरियं णाम महाभितावं, अंधंतमं दुप्पतरं महंतं । उड्ढं अहेयं तिरियं दिसासु, समाहिओ जत्थऽगणी झियाइ ॥११ ॥
कठिन शब्दार्थ - असूरियं - असूर्य - जहाँ सूर्य नहीं है, महाभितावं - महान् ताप वाला, दुप्पतरं - दुःख से पार करने योग्य, समाहिओ - समाहित-अच्छी तरह से व्यवस्थापित, अगणीअग्नि, झियाइ - प्रज्वलित रहती है ।।
भावार्थ - जिसमें सूर्य नहीं हैं तथा जो महान् तापवाला है जो घने अन्धकार से पूर्ण दुःख से पार करने योग्य और महान् है, जहाँ ऊपर नीचे तथा तिरछे अर्थात् सर्व दिशाओं में प्रज्वलित आग जलती है ऐसे नरकों में पापी जीव जाते हैं ।
जंसि गुहाए जलणेऽतिउट्टे, अविजाणओ डण्झइ लुत्तपण्णो । सया य कलुणं पुण धम्मठाणं, गाढोवणीयं अइ दुक्खधम्मं ॥ १२ ॥
कठिन शब्दार्थ - गुहाए - गुफा में, अतिउट्टे - अतिवृत्त-आवृत्त होकर, अविजाणओ - नहीं जानता हुआ, डण्झइ - जलता है, लुत्तपण्णो - लुप्त प्रज्ञ-संज्ञा हीन, घम्मठाणं - गर्मी का स्थान, गाढोवंणीयं - पाप कर्म से प्राप्त, दुक्खधम्म - दुःख ही जिसका धर्म है । .
भावार्थ - जिस नरक में गुफा अर्थात् ऊँट के आकार में स्थापित की हुई आग में पडे हुए
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