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________________ स्त्री परिज्ञा नामक चौथा अध्ययन उत्वानिका.- तीसरे अध्ययन में अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्गों का वर्णन किया है, जिसमें अनुकूल उपसर्ग को दुःसह कहा है । अनुकूल उपसर्गों में भी स्त्री-उपसर्ग अति दुःसह है । इसी उपसर्ग का. इस अध्ययन में स्वरूप बताकर, उस पर विजय पाने का जोर दिया है । भिक्षु के लिये स्त्री का उपसर्ग है तो भिक्षुणी के लिये पुरुष का । प्रश्न- इस अध्ययन का नाम 'स्त्री परिज्ञा' देने का क्या कारण है ? उत्तर - तीन वेद कहे गये हैं - स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद । पुरुष वेद का प्रतिपक्ष स्त्री वेद है और स्त्री वेद का प्रतिपक्ष पुरुष वेद है । पुरुष की प्रधानता के कारण; उसका प्रतिपक्ष रूप स्त्री होने के कारण तथा सूत्रों का ग्रन्थन करने वाले गणधर पुरुष होते हैं इसलिये पुरुष वक्ता होने के कारण उसके प्रतिपक्ष वेद स्त्री होने से इस अध्ययन का नाम 'स्त्री परिज्ञा' रखा गया है । इस बात को .. नियुक्तिकार ने एक गाथा के द्वारा इस प्रकार कहा है - एते चेव य दोसा पुरिससमाएवि इत्थीयाणं पि । तम्हा उ अप्पमाओ विरागमग्गंमि तासिंतु ॥६३ ॥ इससे पहले और इस अध्ययन में शील नाश आदि जो दोष बताये गये हैं या बताये जायेंगे वे सभी दोष पुरुषों के सम्बन्ध से स्त्रियों में भी उत्पन्न होते हैं । अतः साध्वियों को भी पुरुष के साथ परिचय आदि को त्याग कर देना चाहिये । यही उनके लिये कल्याणकारी है । . . इस अध्ययन में स्त्री के संसर्ग से पुरुष में होने वाले दोषों के समान ही पुरुष के संसर्ग से स्त्री में होने वाले दोष भी बताये गये हैं तथा इस अध्ययन का नाम पुरुष परिज्ञा न रख कर स्त्री परिज्ञा रखने का कारण यह है कि - स्त्री की अपेक्षा पुरुष में धार्मिक दृष्टि से प्रधानता होती है । अन्यथा इस अध्ययन को पुरुष परिज्ञा भी कह सकते हैं। प्रश्न - कुछ जमानावादी सुधारक तर्कबाज यह तर्क करते हैं कि - इस स्त्री परिज्ञा अध्ययन में शास्त्रकार ने स्त्रियों की खूब निन्दा की है । क्या उनका यह कथन ठीक है ? उत्तर - नहीं, यह उनका उपरोक्त कथन ठीक नहीं है क्योंकि शास्त्रकार स्वयं निन्दा को पाप कहते हैं । तो फिर भला वे स्वयं निन्दा रूप पाप कर्म का बन्ध क्यों करेंगे ? आशय यह है कि शास्त्रकार न स्त्री की निन्दा करते हैं न पुरुष की प्रशंसा करते हैं । वे तो वस्तु का स्वरूप बताते हैं किकामवासना बुरी है । अर्थात् न पुरुष बुरा है न स्त्री बुरी है किन्तु कामवासना बुरी है । वह चाहे स्त्री में रहे या पुरुष में रहे । कामवासना बुरी है एवं सर्वथा हेय है । सभी पुरुष दूध के धुले हुए के समान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004188
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages338
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size7 MB
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