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अध्ययन २ उद्देशक ३
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गाथा में " उक्कमिए " शब्द दिया है जिसका अर्थ है - उपक्रम (निमित्त, कारण) । निमित्त कारण उपस्थित होने पर आयुष्य बीच में ही टूट जाता है। ऐसे उपक्रम ठाणाङ्ग सूत्र के सातवें ठाणे में सात बतलाये गये हैं । जिनके नाम और अर्थ इस अध्ययन की ८ वीं गाथा में दिये गये हैं ।
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सव्वे सयकम्मकप्पिया, अवियत्तेण दुहेण पाणिणो ।
हिंडति भयाउला सढा, जाइजरा मरणेहिऽभिदुया ॥ १८ ॥
कठिन शब्दार्थ - सयकम्मकप्पिया - स्वकर्म कल्पिता - अपने अपने कर्म से नाना अवस्थाओं से युक्त, अवियत्तेण अव्यक्त, दुहेण परिभ्रमण करते हैं, भयाउलादुःखों से, हिंडंति भयाकुल, सढा - शठ जीव, अभिदुया - अभिद्रुत पीड़ित ।
भावार्थ - सब प्राणी, अपने अपने कर्मानुसार नाना अवस्थाओं से युक्त हैं और सब उपार्जन किये हुए दुःख से दुःखी हैं तथा जन्म, जरा-मरण से पीडित भयाकुल वे अज्ञानीप्राणी, बार बार संसार चक्र में परिभ्रमण करते हैं ।
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इणमेव खणं विजाणिया, णो सुलभं बोहिं च आहियं । एवं सहिएऽहिपास, आह जिणो इणमेव सेसा ॥ १९ ॥ कठिनं शब्दार्थ - इणमेव यही, खणं अवसर अहिपासए ( अहियासए) विचारे, आहु - कहा है, जिणो - ऋषभदेव जिनेश्वर ने, सेसगा शेष तीर्थंकरों ने भी ।
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भावार्थ - ज्ञानादि संपन्न मुनि यह विचारे कि मोक्ष साधन का यही अवसर है और सर्वज्ञ · पुरुषों ने कहा है कि बोध प्राप्त करना सुलभ नहीं है आदि तीर्थंकर श्री ऋषभदेवजी ने अपने पुत्रों से यह उपदेश दिया था और दूसरे तीर्थंकरों ने भी यही उपदेश दिया है ।
सहन करे
विवेचन - इस अवसर्पिणी काल के पहले तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव स्वामी ने अपने ९८ पुत्रों को इस प्रकार का उपदेश दिया था । ( अथवा सभी तीर्थङ्करों ने ऐसा उपदेश दिया था, देते हैं और देंगे ) कि- तुम बोध को प्राप्त करो । बोध को प्राप्त करने का यह अवसर है । क्योंकि जीव को इस प्रकार का अवसर बार-बार प्राप्त नहीं होता है। उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्ययन में बतलाया गया है कि चार अङ्गों (बोलों की ) प्राप्ति होना बड़ा दुर्लभ है यथा- मनुष्य भव, धर्म का सुनना, उस पर श्रद्धा आना और संयम में पुरुषार्थ करना दुर्लभ है तथा दस बोलों की प्राप्ति होना महान् दुर्लभ है । (उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें अध्ययन में दस बोल इस प्रकार बतलाये गये हैं- मनुष्य भव, आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल, लम्बा आयुष्य, नीरोग शरीर, पांच इन्द्रियां परिपूर्ण, साधु साध्वियों का संयोग, जिन धर्म का श्रवण, जिन धर्म पर श्रद्धा आना और संयम में पुरुषार्थ करना) ऐसा अवसर प्राप्त कर बुद्धिमानों का
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