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स्थान ५ उद्देशक २ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 देवाणं अवण्णं वयमाणे । पंचहिं ठाणेहिं जीवा सुलभ बोहियत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा - अरिहंताणं वण्णं वयमाणे जाव विवक्क तव बंभचेराणं देवाणं वण्णं वयमाणे॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - दुल्लभबोहियत्ताए - दुर्लभ बोधि होने का, अवण्णं - अवर्णवाद, चाउवण्णस्स संघस्स - चतुर्विध संघ का, विवक्क तव बंभचेराणं - पूर्व भव में तप और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों का, सुलभबोहियत्ताए - सुलभ बोधि होने के, वण्णं - वर्णवाद-गुणग्राम ।
भावार्थ - पांच कारणों से जीव दुर्लभ बोधि होने का कर्म करते हैं । यथा - अरिहंत भगवान् का अवर्णवाद बोलने से, अरिहंत भगवान् के फरमाये हुए धर्म का अवर्णवाद बोलने से, आचार्य जी महाराज और उपाध्याय जी महाराज का अवर्णवाद बोलने से, साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चतुर्विध संघ का अवर्णवाद बोलने से और जिन्होंने पूर्वभव में तप और ब्रह्मचर्य का पालन करके देवपना प्राप्त किया है उन देवों का अवर्णवाद बोलने से जीव दुर्लभ बोधि होने का कर्म उपार्जन करते हैं । पांच कारणों से जीव सुलभ बोधि होने के कर्म उपार्जन करते हैं। यथा - अरिहंत भगवान् के वर्णवाद बोलने से यानी गुणग्राम करने से यावत् जिन्होंने पूर्वभव में तप और ब्रह्मचर्य का पालन करके देवपना प्राप्त किया है । उन देवों का वर्णवाद बोलने से यानी गुणग्राम करने से जीव सुलभबोधि होने के कर्म उपार्जन करते हैं।
विवेचन - जिन जीवों को जनधर्म दुष्प्राप्य हो उन्हें दुर्लभ बोधि कहते हैं और परभव में जिन जीवों को जिन धर्म की प्राप्ति सुलभ हो उन्हें सुलभ बोधि कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में दुर्लभ बोधि एवं सुलभ बोधि होने के पांच पांच कारण बताये हैं जो इस प्रकार हैं -
दुर्लभ बोधि के पाँच कारण - पाँच स्थानों से जीव दुर्लभ बोधि योग्य मोहनीय कर्म बाँधता है। १. अरिहन्त भगवान् का अवर्णवाद बोलने से। २. अरिहन्त भगवान् द्वारा प्ररूपित श्रुत चारित्र रूप धर्म का अवर्णवाद बोलने से। ३. आचार्य उपाध्याय का अवर्णवाद बोलने से। . ४. चतुर्विध संघ का अवर्णवाद बोलने से। ... ५. भवान्तर में उत्कृष्ट तप और ब्रह्मचर्य का अनुष्ठान किये हुए देवों का अवर्णवाद बोलने से।
सुलभ बोधि के पांच बोल - १. अरिहन्त भगवान् के गुणग्राम करने से। २. अरिहन्त भगवान् से प्ररूपित श्रुत चारित्र धर्म का गुणानुवाद करने से। ३. आचार्य उपाध्याय के गुणानुवाद करने से। ४. चतुर्विध संघ की श्लाघा एवं वर्णवाद करने से।
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