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स्थान ५ उद्देशक २
दुष्ट व्यापार विशेष को क्रिया कहते हैं। कर्म बन्ध के कारण रूप कायिकी आदि पाँच पाँच करके पच्चीस क्रियाएं हैं। वे जैनागम में क्रिया शब्द से कही गई हैं। क्रिया के पाँच भेद - १. कायिकी २. आधिकरणिकी ३. प्राद्वेषिकी ४. पारितापनिकी ५. प्राणातिपातिकी क्रिया।
१. कायिकी- काया से होने वाली क्रिया कायिकी क्रिया कहलाती है।
२. आधिकरणिकी - जिस अनुष्ठान विशेष अथवा बाह्य खड्गादि शस्त्र से आत्मा नरक गति का अधिकारी होता है। वह अधिकरण कहलाता है। उस अधिकरण. से होने वाली क्रिया आधिकरणिकी कहलाती है। ____३. प्राद्वेषिकी - कर्म बन्ध के कारण रूप जीव के मत्सर भाव अर्थात् ईर्षा रूप अकुशल परिणाम को प्रद्वेष कहते हैं। प्रद्वेष से होने वाली क्रिया प्राद्वेषिकी कहलाती है।
४. पारितापनिकी - ताड़नादि से दुःख देना अर्थात् पीड़ा पहुंचाना परिताप है। इससे होने वाली क्रिया पारितापनिकी कहलाती है।
५. प्राणातिपातिकी क्रिया - इन्द्रिय आदि दस प्राण हैं। उनके अतिपात अर्थात् विनाश से लगने वाली क्रिया प्राणातिपातिकी क्रिया है। दस प्राण ये हैं -
पञ्चेन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च। . उच्छ्वास निःश्वास मथान्यदायुः॥ .. . .. प्राणाः दशैते भगवद्भिरुक्ताः।
तेषां वियोजीकरणं तु हिंसा॥ - अर्थ - पांच इन्द्रियाँ, मन बल, वचन बल, काया बल, श्वासोच्छ्वास और आयु से दस प्राण कहे गये हैं। इनको जीव से अलग कर देना प्राणातिपात कहलाता है और इस प्राणातिपात को ही जीव हिंसा कहा गया है।
क्रिया पाँच - १. आरम्भिकी २. पारिग्रहिकी ३. माया प्रत्यया ४. अप्रत्याख्यानिकी ५. मिथ्यादर्शन प्रत्यया।
१. आरम्भिकी - छह काया रूप जीव तथा अजीव (जीव रहित शरीर, आटे वगैरह के बनाये हुए जीव की आकृति के पदार्थ या वस्त्रादि) के आरम्भ अर्थात् हिंसा से लगने वाली क्रिया आरम्भिकी क्रिया कहलाती है।
२. पारिग्रहिकी - मूर्छा अर्थात् ममता को परिग्रह कहते हैं। जीव और अजीव में मूर्छा ममत्व भाव से लगने वाली क्रिया पारिग्रहिकी है।
३. माया प्रत्यया - छल कपट को माया कहते हैं। माया द्वारा दूसरों को ठगने के व्यापार से
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